SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 397
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [५], --------------- उद्देशक: [-], -------------- दारं [-], -------------- मूलं [११८-१२१] (१५) प्रत सूत्रांक [११८-१२१] प्रज्ञापनायाः मलय० वृत्ती. ॥१९६॥ देसे धम्मत्थिकायस्स पएसा अहम्मत्थिकाए अहम्मत्थिकायस्स देसे अहम्मस्थिकायस्स पएसा आगासस्थिकाए आगासस्थिकायस्स देसे आगासस्थिकायस्स पएसा अद्धासमए (मू०११८) रूविअजीवपज्जया णं भंते ! काविहा पन्नता, गोयमा! चउबिहा पचना, तंजहा खंधा खंधदेसा खंधपएसा परमाणुपुग्गला, तेणं भंते ! किं संखेजा असंखेजा अणता, गोयमा! नो संखेजा नो असंखेज्जा अणंता, से केणटेणं भंते ! एवं चुचइ नो संखेज्जा नो असंखेजा अर्णता ?, गोयमा! अर्णता परमाणुपुग्गला अणंता दुपएसिया खंधा जाव अर्णता दसपएसिया खंधा अणंता संखिजपएसिया खंधा अर्णता असंखिजपएसिया खंधा अणंता अणंतपएसिया खंधा, से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं बुचइ ते शं नो संखिज्जा नो असंखिज्जा अणंता । (सू०११९) परमाणुपोग्गलाणं भंते ! केवड्या पज्जया पन्नत्ता, गोयमा ! परमाणुपोग्गलाणं अणंता पजवा पन्नचा, से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-परमाणुपुग्गलाणं अणंता पजवा पन्नत्ता, गोयमा ! परमाणुपुग्गले परमाणुपोग्गलस्स दबट्टयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुले ओगाहणट्ठवाए तुल्ले ठिईए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए जइ हीणे असंखिज्जहभागहीणे वा संखिजहभागहीणे वा संखिज्जइगुणहीणे वा असंखिज्जइगुणहीणे वा अह अन्महिए असंखिज्जइभागअन्महिए वा संखिज्जइभागअम्महिए वा संखिजगुणअब्भहिए वा असंखिजगुणअब्भहिए वा, कालवनपञ्जवेहि सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अम्भहिए जहहीणे अर्णतभागहीणे वा असंखिजहभागहीणे वा संखिजइभागहीणे वा संखि- ' जगुणहीणे वा असंखिज्जगुणहीणे वा अर्णतगुणहीणे वा अह अब्भहिए अर्णतभागअब्भहिए वा असंखिज्जइभागअन्भहिए वा संखिज्जभागअन्भहिए वा संखिजगुणअब्भाहिए वा असंखिजगुणअन्महिए वा अर्णतगुणमभहिए वा एवं अब ५पर्यायपदे अरूपिरूप्यजीवपर्यायाः परमाण्यादीनां द्रव्यादिभिः सू. ११८ दीप अनुक्रम [३२२-३२५] ॥१९६॥ ~396~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy