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________________ आगम “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [५], ---------------- उद्देशक: [-1, --------------- दारं -, -------------- मूलं [११२-११७] (१५) Rece है प्रत सूत्रांक [११२-११७] विकाइयाणं पुच्छा गोयमा ! अणता पज्जवा पन्नत्ता, से केणद्वेणं भंते! एवं बुचइ जहन्नमतिअन्नाणीणं पुढविकाइयाणं अर्णता पजवा पन्नता, गोयमा ! जहन्नमतिअनाणी पुढ विकाइए जहन्नमतिअनाणिस्स पुढविकाइयस्स दबयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुल्ले ओगाहणट्टयाए चउढाणवडिए ठिईए तिहाणवडिए वनगंधरसफासपज्जवेहि छहाणवडिए मइअन्नाणपजवेहिं तुल्ले सुयअन्नाणपञ्जवेहिं अचखुदसणपजवेहिं छट्ठाणवडिए, एवं उकोसमइअन्नाणीवि, अजहन्नमणुकोसमइअन्नाणीवि एवं चेव, नवरं सहाणे छहाणवडिए, एवं सुयअनाणीवि अचक्खुदंसणीवि एवं चेव जाव वणफइकाइया (सूत्र०११३) जहबोगाणगाणं भंते ! बेइंदियाणं पुच्छा गोयमा ! अणता पज्जवा पन्नचा, से केणडेणं भंते ! एवं बुच्चइ जहमोगाहणगाणं बेइंदियाणं अणंता पजवा पन्नत्ता, गोयमा ! जहन्नोगाहणए बेइंदिए जहन्नोगाहणस्स बेइंदियस्स दबट्टयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुल्ले ओगाहणट्ठयाए तुल्ले ठिईए तिहाणवडिए वन्नगंधरसफासपजवेहिं दोहिं नाणेहिं दोहिं अन्नाणेहिं अचक्खुदसणपजवेहि य छट्ठाणवडिए, एवं उकोसोगाहणएवि, णवरं णाणा णस्थि, अजहन्नमणुक्कोसोगाहणए जहा जहयोगाहणए, णवरं सट्टाणे ओगाहणाए चउढाणवडिए, जहन्नठिइयाणं भंते ! बेइंदियाणं पुच्छा गोयमा! अणंता पज्जवा पन्नचा, सेकेणद्वेणं भंते ! एवं बुचइ जहन्नठियाणं बेइंदिइयाणं अणंता यञ्जवा पन्नता ?, गोयमा! जहन्नठिइए वेइंदिए जहन्नठिइयस्स बेइंदियस्स दबयाए तुल्ले पएसयाए तल्ले ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए ठितीए तुल्ले वनगंधरसफासपञ्जबेहिं दोहिं अन्नाणेहि अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छहाणवडिए, एवं उकोसठिइएवि, नवरं दो णाणा अम्महिया, अजहन्नमणुकोसठिइए जहा उकोसठिइए णवरं ठिईए तिहाणवडिए । जहन्नगुणकालगाणं बेइंदियाणं पुच्छा गोयमा ! अर्णता पजवा पत्रचा, से केणद्वेणं दीप अनुक्रम [३१६-३२१] ~ 383 ~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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