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आगम (१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [५], --------------- उद्देशक: [-], --------------- दारं [-], --------------- मूलं [१०३]
श्रीप्रज्ञापनोपाङ्गे पञ्चमं पर्यायपदं ।
प्रत सूत्रांक [१०३]
दीप अनुक्रम [३०७]]
तदेवं व्याख्यातं चतुर्थ पदं, इदानीं पञ्चममारभ्यते-तस्य चायमभिसम्बन्धः-दहानन्तरपदे नारकादिपर्यायरूपेण सवानामवस्थितिरुक्ता, इह त्यौदयिकक्षायोपशमिकक्षायिकभावाश्रयपर्यायावधारणं प्रतिपाद्यते, तत्र चेदमादिसूत्रम्कइविहाणे भंते ! पजवा पनत्ता, गोयमा दुविहा पञ्जवा पञ्चचा, तंजहा-जीवपजवाय अजीवपलवा य । जीवपञ्जवाणं भंते! किं संखेजा असंखेजा अणंता?, गोयमा! नो संखेज्जा नो असंखेज्जा अणंता, से केणडेणं भंते! एवं बुधइ-जीवपजवा नो संखेज्जा नो असंखेज्जा अणंता ?, गोयमा! असंखिज्जा नेरइया असंखिज्जा असुरकुमारा असंखिज्जा नागकुमारा असंखिजा सुवण्णकुमारा असंखिजा विज्जुकुमारा असंखिज्जा अगणिकुमारा असंखिज्जा दीवकुमारा असंखिज्जा उदहिकुमारा असंखिज्जा दिसीकुमारा असंखिज्जा बाउकुमारा असंखिज्जा थणियकुमारा असंखिजा पुढविकाहया असंखिज्जा आउकाइया असंखिज्जा तेउकाइया असंखिज्जा वाउकाइया अणता वणप्फइकाइया असंखेजा बेईदिया असंखेजा तेइंदिया असंखेजा चउरिदिया असंखेजा पंचिंदियतिरिक्खजोणिया असंखेजा मणुस्सा असंखेजा वाणमंतरा असंखेजा जोइसिया असंखेआ पेमाणिया अर्णता सिद्धा, से एएणद्वेणं गोयमा! एवं बुचइ-ते पंनो संखिज्जा नो असंखिज्जा अणंता॥(सूत्र१०३)
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अथ पद (०५) "विशेष" आरभ्यते
पर्यायपदे जीव-पर्याय:
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