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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [४], ---------
------- उद्देशक: [-], -------------- दारं [-], --------------- मूलं [१०२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [१०२]
गोयमा ! जहन्नेणं दो सागरोवमाई उकोसेणं सत्त सागरोवमाई, अपञ्जत्तयाणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणवि उकोसेणवि अंतोमुहुत्तं, पज्जत्तयाणं पुच्छा गोयमा! जहन्नेणं दो सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई ।। माहिदे कप्पे देवाणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणं साइरेगाई दो सागरोवमाई उक्कोसेणं साइरेगाई सत्त सागरोवमाई, अपज्जतयाणं पुच्छा गोयमा ! जहनेणवि कोसेणवि अंतोमुहुनं, पञ्जत्तयाण पुरछा गोयमा! जहनेणं दो सागरोषमाइं साइरेगाई अंतोमुहुत्तूणाई उक्कोसेणं सत्त सागरोबमाई साइरेगाई अंतोमुहुत्तूणाई ।। बंभलोए कप्पे देवाणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणं सत्त सागरोवमाई उक्कोसेणं दस सागरोवमाई, अपज्जत्तयाणं पुच्छा गोयमा ! जहनेणवि उकोसेणवि अंतोमुहुत्तं, पजत्तयाण पुच्छा गोयमा! जहनेणं सच सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई उकोसेणं दस सागरोवमाई अंतोमुहुजूणाई ।। लंतए कप्पे देवाणं पुच्छा गोयमा ! जहनेणं दस सागरोवमाई उकोसेणं चउद्दस सागरोक्माई, अपञ्जत्तयाणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं, पजत्तयाणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणं दस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई उक्कोसेणं चउद्दस सागरोवमाई अंतोमुहुतूणाई ।। महासुके कप्पे देवाणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणं चउद्दस सागरोबमाई उक्कोसेणं सत्तर सागरोवमाई, अपञ्जत्तयाणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणवि उकोसेणवि अंतोमुहुर, पज्जत्तयाणं पुच्छा गोयमा: जहन्नेणं चउद्दस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई उकोसेणं सत्तर सागरोवमाई अंतोमुहुनूणाई ॥ सहस्सारे कप्पे देवाणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणं सत्तर सागरोचमाई उकोसेणं अहारस सागरोवमाई, अपञ्जत्तयाणं पुच्छा गोयमा! जहन्नेणवि उकोसेणवि अंतोमुहुर्ग, पजत्तयाणं पुच्छा गोयमा! जहन्नेणं सत्तर सागरोवमाई अंतोमूहुतूणाई उकोसेणं अद्वारस सागरोवमाई
दीप अनुक्रम [३०६]
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