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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [४], --------------- उद्देशक: [-], -------------- दारं [-], -------------- मूलं [९५-१०१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक Sesesese [९५ १०१॥ वारभूतानां जघन्यतश्चतुर्भागपल्योपमप्रमाणं उत्कर्षतः केपाश्चिदिन्द्रसामानिकादीनां वर्षलक्षाभ्यधिकं पल्योपम, चन्द्रदेवस्य तु यथोक्तमुत्कृष्टमेव, एवं सूर्यादिविमानेष्वपि भावनीयमिति ॥ वेमाणियाणं देवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता?, गोषमा ! जहन्नेणं पलिओवम उक्कोसेणं तेतीसं सागरोवमाई, अपञ्जतयाणं पुच्छा गोयमा! जहनेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुतं, पजत्तयाणं पुच्छा गोवमा! जहनेणं पलिओचम अंतोमुहत्तणं उकोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई । वेमाणियाणं भंते ! देवीणं केवइयं कालं ठिती पण्णत्ता गोयमा ! जहनेणं पलिओवम उक्कोसेणं पणपन्न पलिओवमाई, अपजत्तियाण पुच्छा गोयमा! जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं, पज्जत्तियाणं पुच्छा गोयमा ! जहणं पलिओवम अंतोमुहुत्तूर्ण उक्कोसेणं पणपत्रं पलिओवमाई अंतोमुहुणाई ।। सोहम्मे णं भंते ! कप्पे देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नता ?, गोयमा ! जहन्नेणं पलिओवम उकोसेणं दो सागरोवमाई, अपञ्जत्तयाणं पुच्छा गोयमा! जहनेणवि उकोसेणवि अंतोमुहुतं, पजत्तयाणं देवाणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणं पलिओवम अंतोमुहुत्तूर्ण उक्कोसेणं दो सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, सोहम्मे कप्पे देवीणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणं पलिओवम उकोसेण पन्नास पलिओवमाई, अपअत्तियाणं देवीणं पुच्छा गोपमा जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुर्त, (ग्रन्थाग्र२५००) पज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं उक्कोसेणे पन्नास पलिओवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, सोहम्मे कप्पे परिग्गहियाण देवीणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेण पलिओवम उक्कोसेणं सत्त पलिओवमाई, अपञ्जत्तियपरिग्गहियदेवीणं पुच्छा गोयमा ! जहणवि दीप अनुक्रम [२९९-३०५] coccecers ( REsamanna Sunauranorm | वैमानिक-देवानाम् स्थिति:/(आयुः) ~355~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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