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आगम
“प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [२], ------------ उद्देशक: [-], ---------- दारं -1, ----------- मूलं [१४] + गाथा:(१५०-१७०) मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
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सूत्रांक
प्रज्ञापनाया मलय० वृत्ती. ॥१०॥
२ स्थानपदे सिद्धस्थानादि
[५४]
गाथा:
अभिरूवा पडिरूवा, ईसीपब्भाराए णं पुढवीए सीआए जोयणम्मि लोगंतो तस्स ण जोयणस्स जे से उबरिल्ले गाउए तस्स णं गाउयस्स जे से उवरिल्ले छब्भागे एत्थ पंसिद्धा भगवंतो साइया अपज्जवसिया अणेगजाइजरामरणजोणिसंसारकलंकलीभावपुणब्भवगम्भवासवसहीपवंचसमइकंता सासयमणागयद्धं कालं चिटुंति, तत्थवि य ते अवेया अवेयणा निम्ममा असंगा य संसारविष्पमुक्का पएसनिव्वत्तसंठाणा । कहिं पडिहया सिद्धा, कहिं सिद्धा पइडिया । कहिं बोंदि चइत्ता णं, कत्थ गंतूण सिज्झइ ? ॥१५०॥ अलोए पडिहया सिद्धा, लोयग्गे य पइद्विया । इह बोदि चहत्ता णं, तत्थ गंतूण सिज्झइ ॥१५१|| दीहं वा हस्सं वा जे चरिमभवे हविज संठाणं । तत्तो तिभागहीणा सिद्धाणोगाहणा भणिया ॥१५२ ॥ जं संठाणं तु इहं भवं चयंतस्स चरिमसमयंमि । आसी य पदेसघणं तं संठाणं तर्हि तस्स ॥१५३।। तिमिसया तित्तीसा धणुविभागो य होइ नायबो। एसा खलु सिद्धार्थ उकोसोगाहणा भणिया ॥१५४॥ चत्तारिय रयणीओ रयणी विभागूणिया य बोद्धया। एसा खलु सिद्धाणं मज्झिमओगाहणा भणिया॥१५५||एगाय होइ रयणी अद्वेव य अंगुलाई साहि (य) या । एसा खलु सिद्धाणं जहअओगाहणा भणिया ॥१५६॥ ओगाहणाइ सिद्धा भवचिभागेण होंति परिहीणा । संठाणमणित्थंध (ग्रन्था० १५००) जरामरणविप्पमुकाणं ॥१५७।। जत्थ य एगो सिद्धो तत्थ अणंता भवक्खयविमुक्का । अन्नोऽनसमोगाढा पुट्ठा सबेवि लोगते ॥१५८॥ फुसइ अणते सिद्धे सबपएसेहिं नियमसो सिद्धा। तेऽवि य असंखिज्जगुणा देसपएसेहिं जे पुट्ठा ॥१५९॥ असरीरा जीवघणा उवउचा दंसणे य नाणे य । सागारमणागारं लक्खणमेयं तु सिद्धाणं ॥१६०॥ केवलनाणुवउत्ता जाणता सवभावगुणभावे । पासंता सबओ खलु केवलदिहीहिणताहिं ।। १६१ ॥ नवि अस्थि माणुसाणं तं सुक्खं नवि य सबदेवाणं । जं सिद्धार्ण
दीप अनुक्रम [२३५-२५६]
॥१०६॥
SARERainintenmarana
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