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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [२], ----------- उद्देशक: [-], ---------- दारं-, ----------- मूलं [१३] + गाथा:(१४६-१४९) मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत 28005 BesCatee सूत्रांक [५३] गाथा: चा?, कहि णं भंते ! उवरिमगेविज्जए देवा परिवसति?, गोयमा! मज्झिमगेविजगाणं उप्पि जाव उप्पाचा एत्थ णं उवरिमगेविनगाणं तओ गेविजगविमाणपत्थडा पन्नता पाईणपडीणायया सेसं जहा हेद्विमगेविअगाणं, नवरं एगे विमागावाससए भवन्तीतिमक्खायं, सेसं तहेव भाणियई जाव अहमिंदा नामं ते देवगणा पन्नत्ता समणाउसो!| एकारसुत्रं हेडिमेसु सत्तुत्तरं च मज्झिमए। सयमेगं उवरिमए पंचेव अणुचरविमाणा ॥१४९॥ कहिणं भंते ! अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं पजत्तापञ्जताणं ठाणा पत्रचा?, कहिण भंते ! अणुत्तरोवाइया देवा परिवसंति',गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिजाओ भूमिभागाओ उड्डे चंदिममूरियगहगणनक्खत्ततारारूवाणं चहूई जोयणसयाई बहूई जोयणसहस्साई बहुई जोयणसयसहस्साई बहुगाओ जोयणकोडीओ बहुगाओ जोयणकोडाकोडीओ उहंदूर उप्पहत्ता सोहम्मीसाणसणंकुमार जाव आरणअधुयकप्पा तिनिअट्ठारसुत्तरे गेषिजगषिमाणावाससए वीइवहत्ता तेण पर दूरंगया नीरया निम्मला वितिमिरा विसुद्धा पंचदिसि पंच अणुचरा महइमहालया महाविमाणा पन्नता, तंजहा--विजए वेजयंते जयंते अपराजिए सबट्टसिद्धे, ते ण विमाणा सबरयणामया अच्छा सोहा लण्हा घट्टा मट्ठा नीरया निम्मला निप्पं का निकंकडच्छाया सप्पमा सस्सिरिया सउज्जोया पासाइया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा, एत्थ णं अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं पज्जत्तापजसाणं ठाणा पन्नता, तिसुपि लोगस्स असंखेजहभागे, तत्थ णं वहवे अणुचरोववाइया देवा परिवसंति, सल्वे समिडिया सधे समवला सो समाणुभावा महासुक्खा अजिंदा अप्पेस्सा अपुरोहिया अहमिदा नामं ते देवगणा पन्नत्ता समणाउसो! ॥ (सू०५३) दीप अनुक्रम [२२८-२३४] SAREaranMOM mararyorg ~ 213~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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