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________________ आगम “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्तिः ) (१५) पदं 1-1. ---. --. .-- उद्देशक:-1, ----------------- दारं [-, ...........----- मूलं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्राक ARRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRR अर्हम् । श्रीमच्छ्यामाचार्यटन्धं श्रीमन्मलयगिर्याचार्यविहितविवरणयुत श्रीप्रज्ञापनोपाङ्गम् (पूर्वार्द्धम् ) प्रकाशयित्री-कर्पटवाणिज्यपुरीयश्रेष्ठिमीठाभाइकल्याणचंद्राख्यसंस्थाद्वारागतश्रीसङ्घसत्कभगवतासूत्राय२३३१ रूप्यक एकत्रिंशदधिकत्रयोविंशतिशतश्रेष्ठिमगनलालभाइचन्द्रकारितसुधातुमयखमप्रभवसप्तत्यधिकैकादशशत ११७० रूप्यकसाहाय्येनागमोदयसमितिः श्रेष्ठिसुरचन्द्रात्मजवेणीचन्द्रद्वारा मोहमय्यां 'निर्णयसागर' मुद्रणालये रामचंद्र येसु शेडगेद्वारा मुद्रयित्वा प्रकाशितम् । aRPRASPAPERS दीप अनुक्रम वीरसंवत् २४४४ विक्रमसंवत् १९७४ काईष्ट १९१८. वेतनं ३-१४-० [Rs. 3-14-01 प्रतयः १...] प्रज्ञापना (उपांग)सूत्रस्य मूल “टाइटल पेज" ~1~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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