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आगम
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“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१], --------------- उद्देशक: [-], ------------- दारं [-1, ---- --------- मूलं [...३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
१मज्ञाप
प्रत
प्रजापनायाः मलयावृत्ती.
सूत्रांक [३७]
॥६२॥
दीप अनुक्रम [१९०]
सायवीयरायचरिचारिया य अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरायचरिचारिया य । से किं तं सजोगिकेवलिखीणकसायवीयरायचरित्तारिया, सजोगिकेवलिखीणकसायवीयरायचरित्तारिया दुबिहा प०, तं-पढमसमयसजोगिकेवलिखीणकसायधीयरायचरिचारिया य अपढमसमयसजोगिकेवलिखीणकसायवीयरायचरिचारिया य, अहवा चरिमसमयसजोगिकेवलिखीणकसायवीयरायचरिचारिया य अचरिमसमयसजोगिकेवलिखीणकसायवीयरायचरिचारिया य, सेत्तं सजोगिकेवलिखीणकसायपीयरायचरिचारिया । से किं तं अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरायचरितारिया, अजोगिकेवलिखीणकसाय- त्याचार्यवीयरायचरिचारिया दुविहा प०,०-पढमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीयरायचरित्नारिया य अपढमसमयअजोगि
मनुष्यसूत्र केवलिखीणकसायवीयरायचरिचारिया य, अहवा चरिमसमयअजोगिकेबलिखीणकसायवीयरायचरिचारिया य अचरिमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीयरायचरिचारिया य, सेत्तं अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरायचरितारिया, से केवलिखी. णकसायवीयरायचरित्तारिया, सेनं खीणकसायवीयरायचरित्नारिया सेत्तं वीयरायचरित्नारिया । अहवा चरित्तारियापंचविहा प०,०-सामाइअचरित्तारिया छेदोवडावणीयचरित्तारिया परिहारविसुद्धिचरिचारिया मुहुमसंपरायचरित्तारिया अहक्खायचरिचारिया य । से कितं सामाइयचरित्तारिया, सामाइयचरित्तारिया दुविहा प०,०-इत्तरियसामाइयचरिचारिया य आवकहियसामाइयचरिचारिया य, सेत्तं सामाइयचरिचारिया । से किं तं छेदोवद्वावणियचरिचारिया , छेदोवढावणियचरित्तारिया दुविहा प०,०-साइयारछेदोवडावणियचरिचारिया य निरइयारछेदोवहावणियचरिचारिया य, सेतं छेदोवद्यावणियचरित्तारिया । से किं तं परिहारविमुद्धियचरित्तारिया, परिहारविसुद्धियचरिचारिया 18
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॥६२॥
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