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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [३३], -------------- उद्देशक: [-], ------------- दारं [-], -------------- मूलं [३१८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३१८] रesercederaceae जाणति पासंति, रयणप्यभापुढविनेरइया णं भंते ! केवतियं खेत्तं ओहिणा जाणति पासंति?, गो० ज० अदुवाई गाउयाई उको चत्तारि गाउयाई०, सक्करप्पभापुढविनेरइया जह• तिष्णि गा० उको० अद्भुट्ठाई गाउ०, वालुयप्पभापुढविनेराया ज० अद्धाइलाई गाउ० उ० तिणि गाउयाई ओहिणा जाणंति पासंति, पंकप्पभामुडविनेरइया ज० दोण्णि गाउ० उ० अद्भाइजाई गा० ओहिणा जा० पा०, धूमप्पभापु० नेर० जह० दिवद्धंगा उक्को दो गाउ० ओहिणा जा० पा०, तमापु० ने० ज० गाउयं उ० दिवई गाउयं ओहिणा जा०या०, अधेसत्तमाए पुच्छा, मो०। जह० अर्बु गाउयं उ० गाउयं ओहिणा जा० पा० । असुरकुमारा णं भंते ! ओहिया केवइयं खेत जा. पा.१, गो० ज० पणवीसं जोअणाई उको० असंखेले दीवसमुद्दे ओहिणा जा० पा०, नागकुमारा णं ज. पणवीसं जोअणाई उ० संखेजे दीवसमुद्दे ओहिणा जा० पा०, एवं जाव थणियकुमारा । पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! केवइयं खेतं ओहिणा आणति पासंति , गो० ज० अंगुलस्स असंखेअतिभागं उ० असंखेजे दीवसमदे, मसाणं भंते ! ओहिणा केवतितं खेच जा० पा०, गो.! ज० अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं उको० असंखेज्जाई अलोए लोयप्पमाणमेचाई खंडाई ओहिणा जा० पा० । वाणमंतरा जहा नागकुमारा, जोइसिया णं मंते ! केवतितं खेत्तं ओ० जा० पा०१, गो० ज० संखेजे दीवसमुद्दे उकोसेणवि संखेजे दीवसमुद्दे, सोहम्मगदेवाणं भंते ! केव० खेत्तं ओ० जा० पा०, गो० ज० अंगुलस्स असंखेजतिभागं उक्को० अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए हिडिल्ले चरमंते तिरियं जाव असंखिजे दीवसमुद्दे उड्डु जाव सगाई विमाणाई ओहिणा जाणंति पासंति, एवं ईसाणगदेवावि, सणकुमारदेवावि एवं चेच, नवरं जाव अहे दोच्चाए सकरप्पभाए पुढवीए ब्रटseeeee दीप अनुक्रम [५८१] ~ 1083~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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