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आगम
(१४)
“जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [७], --------------------- उद्देशक: [-], ------------------- मूलं [२४१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [२४१]
श्रीजीवाजीवाभि. मलयगिरीयावृत्तिः
8 प्रतिपत्ती दप्रथमसमशयनैरयिकादिस्थित्यादि उद्देशः२ ४ सू०२४१
॥४२९॥
दीप अनुक्रम [३६६]
अपढममणुस्त० जहरू खुट्टागं भवग्गहणं समऊणं उक्क तिन्नि पलिओवमाई पुख्वकोतिपुहसमन्भहियाई ॥ अंतरं पढमसमयणेरतियस्स जह• दसवाससहस्साई अंतोमुहत्तमभहियाई उको० वणस्सतिकालो, अपढमसमय जह० अंतोमु० उक० वणस्सतिकालो । पत्मसमयतिरिक्खजोणिए जहदो खुडागभवग्गहणाई समऊणाई उको वणस्सतिकालो, अपढमसमयतिरिक्खजोणियस्स जह० खुड्डागं भवग्गहणं समयाहियं उको सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगे । पढमसमयमणुस्सस्स जह० दो खुड्डाई भवग्गहणाई समऊणाई उको० वणस्सतिकालो, अपढमसमयमणुस्सस्स जह० खुट्टागं भवग्गहणं समयाहियं उको० वणस्सतिकालो। देवाणं जहा नेरइयाणं जह० दसवाससहस्साई अंतोमुत्तमम्भहियाई उको० वणस्सइकालो, अपढमसमय जह अंतो० उदो० वणस्सइकालो ।। अप्पाबहु० एतेसि णं भंते ! पढमसमयनेरइयाणं जाव पढमसमयदेवाण य कतरे २हिंतो०?, गोयमा! सव्यस्थोवा पहमसमयमणुस्सा पढमसमयणेरड्या असंखेजगुणा पत्मसमयदेवा असंखेजगुणा पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेजगुणा ॥ अपढमसमयनेरइयाणं जाव अपहमदेवाणं एवं चेव अप्पबहु० णबरि अपढ़मसमयतिरिक्खजोणिया अर्णतगुणा ।। एतेसिं पढमसमयनेरइयाणं अपढमणेरतियाणं कयरे २१, सब्बत्थोवा पढमसमयणेरतिया अपढमसमयनेरइया असंखेजगुणा, एवं सब्वे ।। पढमसमयणेरइयाण जाव अपढमसमय
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॥४२९॥
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