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आगम
(१४)
प्रत
सूत्रांक
[२२९
-२३०]
दीप
अनुक्रम
[३५१
-३५२]
“जीवाजीवाभिगम” - उपांगसूत्र - ३ ( मूलं + वृत्ति:)
-
प्रतिपत्तिः [५],
उद्देशक: [-]
मूलं [२२९-२३०]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [१४], उपांग सूत्र [३] "जीवाजीवभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
परागावि ॥ एतेसि णं भंते! पुढविकाइयाणं पज्जत्तगाण अपजत्तगाण य कयरे२हिंतो अप्पा वा एवं जाव विसेसाहिया ?, गोयमाः सव्वत्थोवा पुढविकाइया अपजत्तगा पुढविकाइया पजत्तगा संखेजगुणा, एतेसि णं० सव्वत्थोवा आउकाइया अपनत्तगा पजत्तगा संखेज्जगुणा जाव वणस्स तिकाइयावि, सव्वत्थोवा तसकाइया पञ्चत्तगा तसकाइया अपजन्तगा असंखेजगुणा ॥ एएसि णं भंते! पुढविकाइयाणं जाव तसकाइयाणं पञ्जन्तगअपज्जत्तगाण य करे२हिंतो अप्पा वा ४१, सव्वत्थोवा तसकाइया पजत्तगा तसकाइया अपजत्तगा असंखेज्जगुणा तेउकाइया अपत्ता असंखेज्जगुणा पुढविकाइया आउक्काइया वाउक्काया अपजसगा विसेसाहिया उक्काइया पत्ता संखेनगुणा पुढविआउवाउपजत्तगा विसेसाहिया, वणस्सतिकाइया अपजत्तगा अनंतगुणा, सकाइया अपज्ञत्तगा विसेसाहिया, वणस्सतिकाइया पज्जसगा संखेज्जगुणा, सकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया || (सूत्रं २२९) मुहमस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ?, गोमा ! जहत्रेणं अंतोमुहतं उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं एवं जाव सुडुमणिओयरस, एवं अपज्जतगाणवि पज्जत्तगाणवि जहणेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुद्दत्तं ॥ ( सू० २३० )
'एएसि ण 'मित्यादि, सर्वस्तोकास्त्रसकायिकाः, द्वीन्द्रियादीनामेव त्रसकायत्वात् तेषां च शेषकायापेचयाऽल्पत्यात्, तेभ्यस्तेजस्का
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