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आगम
(१४)
“जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [३], ----------- ------------ उद्देशक: [(द्विप्-समुद्र)], ------ -------- मूलं [१७७] + गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [9] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
[१७७]
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गाथा: ||१-३२||
मणुस्साणं ॥१३॥ तेसिं पविसंताणं ताबक्खेत्तं तु वहुए नियमा। तेणेव कमेण पुणो परिहायह निक्खमंताणं ॥ १४ ॥ तेसिं कलंवुयापुष्फसंठिया होइ ताववेत्तपहा । अंतो य संकुपा वाहि विस्थडा चंदसूरगणा ॥१५॥ केणं बहुति चंदो परिहाणी केण होइ चंदस्स । कालो वा जोण्हो वा केणऽणुभावेण चंदस्स?॥१६॥ किण्हं राहविमाणं निचं चंदेण होइ अविरहियं । चउरंगुलमप्पत्तं हिट्ठा चंदस्स तं चरइ ॥१७॥ बावहि थावहि दिवसे दिवसे उ सुक्तपक्खस्स । जं परिवह चंदो खवेइ तं चेव कालेणं ॥ १८ ॥ पन्नरसहभागेण य चंदं पन्नरसमेव तं बरह । पन्नरसहभागेण य पुणोवि तं चेव तिकमइ ॥१९॥ एवं बहुइ चंदो परिहाणी एव होइ चंदस्स । कालो वा जोण्हा वा तेणणुभावेण चंदस्स ॥२०॥ अंतो मणुस्सखेत्ते हवंति चारोवगा य उववपणा । पचविहा जोइसिया चंदा सूरा गहगणा य ॥ २१ ॥ तेण परं जे सेसा चंदाइचगहतारनवत्ता। नस्थि गई नथि चारो अवडिया ते मुणेयव्वा ॥२२॥ दो चंदा इह दीवे चत्तारि य सागरे लवणतोए । धायइसंडे दीवे वारस चंदा य सूरा य ॥ २३ ॥ दो दो जंबूद्दीवे ससिसूरा दुगुणिया भवे लवणे । लावणिगा य निगुणिया ससिसूरा घायईसंडे ॥ २४ ॥ धायइसंडपभिई उद्दिवतिगुणिया भवे चंदा ! आइल्लचंदसहिया अणंतराणतरे खेसे ॥ २५॥ रिक्खग्गहतारग्गं दीवसमुद्दे जहिच्छसे नाउं । तस्स ससीहिं गुणियं रिक्वग्गहतारगाणं तु ॥ २६ ॥ चंदातो सूरस्स य सूरा
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दीप अनुक्रम [२५०-२८६]
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