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________________ आगम (१४) “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [३], ---- ------------ उद्देशक: [(द्विप्-समुद्र)], -- -------- मूलं [१६१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: श्रीजीवाजीवाभि मलयगिरीयावृत्तिः AAR प्रत सूत्रांक [१६१] प्रतिपत्ती गौतम द्वीपः उद्देशः२ सू०१६१ ॥३१४॥ दीप अनुक्रम [२०८] तेणं दो कोसे ऊसिते जलंताओ ।। से णं एगाए य पउमयरवेइयाए एगेणं वणसंडेणं सव्वतो समंता तदेव वपणओ दोण्हवि । गोयमदीवस्स णं दीवस्स अंतो जाव बहसमरमणिजे भूमिभागे पण्णते, से जहानामए-आलिंग जाव आसयंति । तस्स णं बहसमरमणिजस्स भूमिभागस्स बहमझदेसभागे एस्थ णं सुट्टियस्स लवणाहिवइस्स एगे महं अइकीलावासे नाम भोमेजविहारे पपणत्ते वावर्द्धि जोयणाई अद्धजोयर्ण उहूं उच्चत्तेणं एकतीसं जोयणाई कोसंच विक्खंभेणं अणेगखंभसतसन्निविटे भवणवणओ भाणियव्यो । अइकीलावासस्स णं भोमेजविहारस्स अंतो बहुसमरमणिजे भूमिभागे पण्णत्ते जाव मणीणं भासो । तस्स णं बहुसमरमणिजस्स भूमिभागस्स वहमज्झदेसभाए एत्य एगा मणिपेढिया पपणत्ता । साणं मणिपढिया दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं जोयणवाहल्लेणं सब्बमणिमयी अच्छा जाव पडिरूवा ॥ तीसे णं मणिपेढियाए उवरि एल्थ णं देवसयणिजे पपणत्ते वपणओ॥से केणटेणं भंते! एवं बुचति-गोयमदीवेणं दीवे ?, तत्थ २ तहिं २ बहई उप्पलाई जाव गोयमप्पभाई से एएण?णं गोयमा! जाव णिचे । कहि णं भंते! सुट्टियस्स लथणाहिवइस्स सुविया णामं रायहाणी पण्णत्ता?, गोयमदीवस्स पचस्थिमेणं तिरियमसंखेजे जाव अण्णमि लवणसमुद्दे बारस जोपणसहस्साई ओगाहित्ता, एवं तहेव सव्वं यव्वं जाव सुत्थिए देवे ॥ (सू० १६१) ॥३१४॥ अत्र मूल-संपादने शिर्षक-स्थाने एका स्खलना वर्तते-द्विप्-समुद्राधिकारः एक एव वर्तते, तत् कारणात् उद्देश:- २' अत्र २ इति निरर्थकम् ~631~
SR No.004114
Book TitleAagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size230 MB
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