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________________ आगम (१४) “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [३], ----- ------------- उद्देशक: [(द्विप्-समुद्र)], -------- मूलं [१२७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: S H C - प्रत सूत्रांक - - [१२७] - तहिं बहवे जाइमंडवगा जूहियामंडवगा मल्लियामंडवगा शवमालियामंडवगा वासंतीमंडबगा दधिवासुपामंडवगा रिल्लिनंडवगा तंबोलीभंडवगा मुद्दियामंडवगा पागलयानंडवगा अतिमुत्तमंडवगा अकोलामंडवगा मालुवामंडवगा सामलयामंडकमा णिचं कुसुमिया णिचं जाय पडिरूवा ॥ तेसु णं जातीभंडवासु बहवे पुढविसिलापत्या पणता, संजहा-हंसासणसंठिता कोंचासणसंठिता भरलासगसंठिना उग्णयासणसंठिा पणयासणसंठिता दीहासणसंठिता भदासणसंठिता पक्वासणसंठिता मगरासगसंठिता उसभासणसंठिता सीहासणसंठिता पशुमाससंठिता दिसासोत्थिवासणसंठिता पं० तत्व बहये परसपणासगविसिट्ठसंठाणसंठिया पपणत्ता समणाउसो! आइण्यगरूयवरणवणीतलफासा नया सबरयणाभवा अच्छा जाव पडिरूवा । तस्थ णं पहवे वाणभंतरा देवा देवीओय आसयंति सयंति चिट्ठति णिसीदति तुयइंति रमति ललंति कीलंति मोहंति पुरापोराणाणं सुचिपणाणं सुपरिकंनाणं सुभाणं कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणं फलवित्तिविसेसं पचणभवमाणा विहरति ।। नीसे गं जगतीए 'उपि अंतो पउभवरवेदियाए एत्य णं एगे महं वणसंडे पण देणाई दो जोषणाई विश्वभेणं बेड्यासमपूर्ण परिक्खेवेणं किण्हे किण्होभासे धगयाओ (मणि)नगसद्दविहणो णेययो, सत्य पहये थाणमंतरा देवा देवीओ य आलयंति सर्वति चिट्ठति णिसीयंति तु यहति रमंति - - दीप अनुक्रम [१६५] - - --- --- - ~396~
SR No.004114
Book TitleAagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size230 MB
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