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आगम
(१४)
प्रत
सूत्रांक
[१२७]
दीप
अनुक्रम [१६५]
श्रीजीवाजीवाभि०
मलयगि रीयावृत्तिः
॥ १९६ ॥
“जीवाजीवाभिगम"
Ja Erin
-
प्रतिपत्ति: [३],
उद्देशक: [(द्विप्-समुद्र)].
मूलं [१२७]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [१४], उपांग सूत्र [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि प्रणीत वृत्तिः
उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्तिः)
अच्छा जाव पहिया । तासि खुडियाणं याचीणं जाव विलपतियाणं तत्थ तत्थ देसे २ तर्हि या जियइकन्यया जगतिपश्वधा शुरुपव्वया दगमंडवा दगमंचका दुगाका गायगा ऊसा खुट्टा बडगा अंदोलगा पक्खंदोलगा सच्चरवणामया अच्छा जाय परुिवा || तेसु उपाय जाब दोलए बहवे हंसासणाई कोचासणाई रुसणाई उण्णवासगाई पणवासणाई बीहागाई महासणाई पक्वासणाई मगरासजाई उसमासगाई तीहासणाई परमाताई दिसायासणाई सव्वरयणामाई अच्छाई हाई हाई हाई महाई जीरयाई निम्नलाई निष्पंकाई निकंकडच्छायाई सप्पभाई सम्मि याई ओपाई पादीयाई दरिसनिनाई अभिख्याई पडिवाई | तस्स र्ण वणसंडस्स तत्थ तत्थ देसे २ तहिं हि बहवे आलिवर माहिधरा कर्यादिधरा दयाचरा अच्छणघरा पेच्छणघरा मज्जणधरगा सावरगा नव्नघरगा मोहनचरगा सालघरगा जालघरगा कुसमघरगा चित्तघरगा inr आवरणा सव्वरयणानया अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा णीरया णिमला frrier freeडच्छाया सप्पभा सम्मिरीया सज्जोया पासादीया दरिसणिजा अभिहवा पडिख्या || तेसु णं आलिघरएस जाव आयंसघरएस बहई हंसासणाई जाब दिसासोबत्यासणारं सव्वरयणामयाई जाव पडिवाई | तस्स णं वणसंडस्स तत्थ तत्थ देसे २ तहिं
प्रतिपक्षी
मनुष्या० वनखण्डाधि०
उद्देशः १
सू० १२७
~ 395~
॥ १९६ ॥
अत्र मूल-संपादने शिर्षक-स्थाने एका स्खलना वर्तते द्विप्-समुद्राधिकारः एक एव वर्तते, तत् कारणात् उद्देश:- '१' अत्र १ इति निरर्थकम्