________________
आगम
(१४)
“जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [३], ----- ------------- उद्देशक: [(द्विप्-समुद्र)],
-------- मूलं [१२६]] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [१२६]
दीप अनुक्रम [१६४]
CRICKS
डलधुरागस्स कालायसमुकयणेमिजंतकम्मस्स आइपणवरतुरगसुसंपउत्तस्स कुसलणरछेयसारहिसुसंपरिगहितस्स सरसतयत्तीसतोरण(परि)मंडितस्स सकंकडवर्डिसगस्स सचावसरपहरणाघरणहरियस्स जोहजुद्धस्स रायंगणसि वा अंतेपुरंसि वा रम्मंसि वा मणिकोहिमतलंसि अभिक्खणं २ अभिघहिजमाणस्स बा णियहिजमाणस्स वा [परूढवरतुरंगस्स चंडवेगाइहस्स] ओराला मणुपणा कण्णमणणिबुतिकरा सब्बतो समंता सद्दा अभिणिस्सवंति, भवे एतारूवे सिया?, णो तिणढे समढे, से जहाणामए-बेयालियाए वीणाए उत्तरमंदामुच्छिताए अंके सुपरष्टियाए वंदणसारकाणपडिपहियाए कुसलणरणारिसंपगहिताए पदोसपचूसकालसमपंसि मंद मंदं एइयाए वेड्याए खोभियाए उद्दीरियाए ओराला मणुपणा कपणमणणिबुतिकरा सब्बतो समंता सद्दा अभिणिस्सवंति, भवे पयारूवे सिया?, णो तिणट्टे समठे, से जहाणामए-किपणराण वा किंपुरिसाण वा महोरगाण वा गंधव्वाण वा भद्दसालवणगयाण या नंदणवणगयाण वा सोमणसवणगयाण वा पंडगवणगयाण वा हिमवंतमलयमंदरगिरिगुहसमपणागयाण वा एगतो सहितार्ण संभुहागयाणं समुचिट्ठाणं संनिविद्वाणं पमुदियपक्कीलियाणं गीयरतिगंधव्यहरिसियमणाणं गेज पळ कत्थं गेयं पयचिद्धं पायविद्धं उक्खित्तयं पवत्तयं मंदाय रोचियावसाणं सत्तसरसमपणागयं अट्ठरससुसंपउत्तं छद्दोसविप्पमुकं एकारसगुणालंकारं अद्वगुणोववेयं गुंजंतवंसकुहरोचगूद
~374~