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________________ आगम (१४) “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [३], ----------------------- उद्देशक: [(देव०)], -------------------- मूलं [११९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [११९] जाव पाहिरियाए परिसाए कति देविसया पण्णत्ता?, गोयमा! बलिस्स णं बहरोयर्णिदस्स २ अभितरियाए परिसाए वीसं देवसहस्सा पण्णता, मज्झिमियाए परिसाए चउवीसं देवसहस्सा पणत्ता, बाहिरियाए परिसाए अट्ठाचीसं देवसहस्सा पण्णत्ता, अभितरियाए परिसाए अद्धपंचमा देविसता, मज्झिमियाए परिसाए चत्तारि देविसया पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए अबुट्ठा देविसता पण्णत्ता, बलिस्स ठितीए पुच्छा जाव वाहिरियाए परिसाए देवीणं केवतियं कालं ठिती पपणत्ता?, गोयमा! बलिस्स णं वइरोयर्णिदस्स २ अभितरियाए परिसाए देवाणं अडुट्टपलिओवमा ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए तिन्नि पलिओवमाई ठिती पण्णता, पाहिरियाए परिसाए देवाणं अट्ठाइजाइं पलि ओवमाई ठिई पन्नसा, अम्भितरियाए परिसाए देवीणं अट्ठाइजाई पलिओवमाई ठिती पपणत्ता, मज्झिमियाए परिसाए देवीणं दो पलिओचमाई ठिती पण्णत्ता, वाहिरियाए परिसाए देवीणं दिवढे पलिओवमं ठिती पण्णत्ता, सेसं जहा चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररपणो । (सू०११९) 'कहि णं भंते! उत्तरिल्लाणं असुरकुमाराणं देवाणं भवणा पण्णत्ता' इत्यादि, क भदन्त ! उत्तराणामसुरकुमाराणां भवनानि प्रजातानि? इत्येवं यथा प्रज्ञापनायां द्वितीये स्थानाख्ये पदे तथा ताव कम्यं यावद्वलिः, अत्र बैरोचनेन्द्रो वैरोचनराजः परिवसति, तत ऊर्द्धमपि तावद्वक्तव्यं यावद्विहरति, तचैवम्-'कहिणं भंते ! उत्तरिहा असुरकुमारा देवा परिवसंति', गोयमा! जंबु CAREER दीप अनुक्रम [१५७ - - - ~336~
SR No.004114
Book TitleAagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size230 MB
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