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आगम
(१४)
“जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति: [३], ----------------------- उद्देशक: [(मनुष्य)], -------------------- मूलं [१११] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक [१११]
दीप अनुक्रम [१४५]
पुख्यतणुपगोपुरुरवहसमलहियणमियआएजललियवाहाओ तंवणहा मंसलग्नहत्था पीयरकोमलवरंगुलीओ णिद्धपाणिलेहा रविससिसंखचक्कसोस्थियसुविभत्तसुविरतियपाणिलेहा पीणुप्रणयकक्ववस्थिदेसा पडिपुषणगलकबोला चाउरंगुलमुप्पमाणकयुवरसरिसगीवा मंसलसंठियपसस्थहणुया वाडिमपुष्फप्पगासपीवरकुंचियवराधरा सुंदरोत्सरोहा दधिदगरयचंदकुंदवासंतिमउलअच्छि द्दविमलदसणा रतुप्पल पत्तमउयसुकुमालतालुजीहा कणय(व)रमुउल अकुडिलअन्भुगतउजुतुंगणासा सारदणवकमलकुमुदकुवलयविमुक्कदलणिगरसरिसलक्षणअंकियकंतणयणा पत्तलचवलायनपलोयणाओ आणामितचावइलकिपहाभराइसंठियसंगतआययसुजातकसिणणिद्धभमुया अल्लीणपमाणजुत्तसवणा पीणमट्टरमणिजगंडलेहा चउरंसपसत्यसमणिडाला कोमु. तिरयणिकरविमलपडिपुन्नसोमवयणा छत्तुन्नयउत्तिमंगा कुरिलसुसिणिददीहसिरया छत्तज्मयजुगथूभदामिणिकमंडलुकलसबाविसोत्थियपडागजवमच्छकुम्मरहवरमगरसुकथाल अंकुसअहावयवीहसुपइट्टकमयूरसिरिदामाभिलेयतोरणमेइणिउदधिवरभवणगिरिवरआयसललियगत उसभसीहत्यमरउत्तमपसत्थवत्तीसलवणधरातो हंससरिसगतीतो कोनिलमधुरगिरसुस्सराओ कता सव्वस्स अणुनतातो ववगतवलिपलिया चंगदुव्बण्णवाहीदोभग्गसोगमुकाओ उच्चत्तेण य नराण थोवूणमूसियाओ सभावसिंगाराचारचारुवेसा संगतगतहसित भणियचेदियविला
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