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________________ आगम (१४) “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [३], ---- ------------ उद्देशक: [(तिर्यञ्च)-२], ---- ---------- मूलं [१०१-१०२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१०१ १०२]] उको तेसीसं सागरोवमाई ठिती, एयं सव्वं भाणियव्वं जाव सब्वट्ठसिद्धदेवत्ति ॥ जीवे णं भंते ! जीवेत्ति कालतो केवचिरं होइ ?, गोयमा! सव्वई, पुढविकाइए णं भंते ! पुढविकाइएत्ति कालतो केवचिरं होति?, गोयमा! सब्बई, एवं जाव तसकाइए ॥ (सू०१०१)। पटुप्पन्नपुढविकाइया णं भंते! केवतिकालस्स णिलेवा सिता?, गोयमा! जहण्णपदे असंखेजाहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणीहिं उक्कोसपए असंखेजाहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं, जहन्नपदातो उक्कोसपए असंखेजगुणा, एवं जाव पटुप्पन्नवाउकाइया। पडुप्पन्नवणप्फइकाइयाणं भंते! केवतिकालस्स निहल्लेवा सिता?, गोयमा! पटुप्पन्नवण० जहण्णपदे अपदा उकोसपदे अपदा, पटुप्पन्नवणप्फतिकाइयाणं णत्थि निल्लेवणा || पडप्पन्नतसकाइयाणं पुच्छा, जहण्णपदे सागरोवमसतपुहत्तस्स उकोसपदे सागरोवमसतपुहुत्तस्स, जहण्णपदा उक्कोसपदे विसेसाहिया ॥ (मू०१०२) 'काबिहा ण'मित्यादि, कतिविधा णमिति पूर्ववन् , भदन्त ! पृथिवी प्रज्ञप्ता ?, भगवानाह-गौतम पडिया प्रज्ञाप्ता, तथथा-लक्ष्ण-| | पृथिवी मृती चूर्णितलोष्टकल्पा, 'शुद्धपृथिवी' पर्वतादिमध्ये, मनःशिला-लोकप्रतीता, वालुका-सिकतारूपा, शर्करा-मुरुण्डपृथिवी, खरापृथिवी' पापाणादिरूपा । अधुना एतासाने स्थित्तिनिरूपणार्थमाह-'सण्हपुढवीकाइयाण मित्यादि, सक्ष्णपृथिवीकावि कानां भदन्त ' कियन्तं कालं खिति: प्रज्ञता ?, भगवानाह-गौतम ! जघन्येनान्तर्मुहूर्त्तमुत्कर्षत एक वर्षसहस्रं । एवमनेनाभिलापेन हशेषाणामपि प्रथिवीनामनया गाथया उत्कृष्ठमनुगन्तव्यं, तामेव गाथामाह-'सण्हा य'इत्यादि (सहा य सुद्धवालुअ मणोसिला दीप अनुक्रम [१३५ १३६] ~282~
SR No.004114
Book TitleAagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size230 MB
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