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आगम
(१४)
प्रत
सूत्रांक
[६]
दीप
अनुक्रम
[१३०]
“जीवाजीवाभिगम” - उपांगसूत्र - ३ ( मूलं + वृत्ति:)
प्रतिपत्तिः [३],
उद्देशक: [(तिर्यञ्च)-१],
मूलं [९६]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [१४], उपांग सूत्र [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि प्रणीत वृत्तिः
से किं तं चप्पलयरपंचिंदिय० ? चउप्पय० दुबिहा पण्णत्ता, जहा - संमुच्छिमच उप्पयथauritiare reaiनियचउप्पयथलयरपंचेंद्रियतिरिक्वजोणिता य, जहेब जलयराणं तहेव चको भेदो, सेत्तं चप्पलयरपंचेंद्रिय० । से किं तं परिसप्पयरपंचेंद्रियतिरिक्ख० ?, २ दुविहा पण्णत्ता, तंजहा — उरगपरिसप्पथलयरपंचेंद्रियतिरिक्खजोणिता भुयगपरिसम्पधलयरपंचेंद्रियतिरिक्खजोणिता । से किं तं उरगपरिसप्पथलयरपंचेंद्रियतिरिक्ख जोणिता ?, उरगपरि० दुबिहा पण्णत्ता, तंजहा- जहेब जलयराणं तहेव चक्कतो भेदो, एवं भुयगपरिसप्पाणवि भाणितत्रयं से नं भुयगपरिसप्पथलयरपंचेंद्रियतिरिक्वजोणिता से तं थल पर पंचेंद्रियतिरिक्खजो - शिता । से किं तं खयर पंचेंद्रियतिरिक्ग्वजोणिया ?, वह० २ दुबिहा पण्णत्ता, तंजा-संमुच्छि मखयरपंचेंद्रियतिरिक्ग्वजोणिता गन्भवतियस्वह पर पंचेंद्रियनिरिक्खजोणिता य से किं तं संमुच्छिमहयरपंचेद्रियतिरिक्खजोणिता?, संमु० २ दुविधा पण्णत्ता, तंजहा - पत्तगसंमुच्छिमखयरपंचेद्रियतिरिक्खजोणिया अपजत्तग समुच्छिमखपरपंचेद्रियनिरिक्खजोणिया प एवं भवतियाचि जाब पतगगन्भयकंनियावि जाव अपजन्तगगग्भवनियावि खहयर पंचदियतिरिक्खजोणियाणं भंते! कतिविधे जोणिसंगहे पण्णत्ते ?, गोयमा! तिविहे जोणिसंग
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