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आगम
(१४)
“जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [३], --
.........---- उद्देशक: (तिर्यञ्च)-१], -------------------- मूल [९६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
श्रीजीवाजीवाभि० मलयगिरीयावृत्तिः
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प्रत
दा प्रतिपत्ती
तिर्यगधि । उद्देशः १ सू०९६
सूत्रांक
॥१३१॥
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[१६]
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स किं तं पादरपुढविकाइय?, २ दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-पज्जत्सवादरपु० अपजत्रावादरपुर, से तं थायरपुतविकाइयएगिदिया से तं पुढवीकाइयएगिदिया । मे किं तं आपकाइयएगिदिय०१, २ दुविहा पणत्ता, एवं जहेव पुढविकाइयाणं तहेव, वाउकायभेदो एवं जाव वणस्सतिकाइया से नं वणस्सइकाएगिदियतिरिक्व०से किं तं बेइंदियतिरिक्व०?, २ दुविधा पण्णत्ता, तंजहा-पजत्तकइंदियति अपजत्तवेइंदियति०, से तं बेइंदियतिरिक एवं जाय चाउरिदिया। से किं तं पंचेदियतिरिक्खजोणिया?, २तिविहा पण्णता, तंजहा-जलयरपंचेंदियतिरिक्वजोणिया घलयरपंचेदियतिरिक्वजो वहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया।से किं तं जलयरपंचेदियतिरिक्वजोणिया?, २ विहा पण्णता, तंजहा-संमच्छिमजलयरपंचेदियतिरिक्वजोणिया य ग
भवानियजलयरपंचंदियतिरिक्वजोणिया या से कितं समुच्छिनजलयरपंचिंदियतिरिक्वजो. णिना, २ दुधिहा पण्णत्ता, तंजहा-पजत्तगसमुच्छिम० अपजत्तगसंभुच्छिम. जलयरा, से न संच्छिमा पंचिंद्रियतिरिक्रवः । से किं तं गम्भवतियजलयरपंचेदियतिरिकग्वजोणिया ?, २दुविधा पण्णता, तंजहा-पजत्तगगम्भवतिय० अपज लगभ० से तं गम्भवनियजलयर० से तं जलयरपंचेंदियतिरिकासे किं तं थलयरपंचेंदियतिरिकावजोणिता?,२ दुविधा पण्णत्ता, तंजहा-चउपयथलयरपंचेंदिय. परिसप्पथलपरपंचेंदियतिरिक्वज़ोणिता।
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दीप
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अनुक्रम [१३०]
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१३१॥
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