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________________ आगम (१४) “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [३], -- ----------------------- उद्देशक: [(नैरयिक)-१], -------------------- मूलं [७२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] जीवाजीवाभिगममूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक प्रतिपत्ती उद्देशः१ रत्नप्रभा काण्डादिद्रव्यस्व. [७२] दीप अनुक्रम श्रीजीवा- तनुपातो पाइल्येन, तखात्यधोऽसयानि योजनसहस्राणि बाहत्येनावकाशान्तरम् । एवं शेषाणामपि पृथिवीनां घनोदण्यादयः प्रत्येक जीवाभिःतावद्वक्तव्या यावद्धःसप्तम्याः ॥ मलयगि इमीसेणं भंते! रयणप्प. पु. असीउत्तरजोयण(सय)सहस्सवाहल्लाए ग्वेसच्छेएणं छिजमाणीए रीयावृत्तिः अस्थि दवाई वण्णतो कालनीललोहितहालिहसुकिल्लाई गंधतो सुरभिगंधाई दुन्भिगंधाई रसतो ॥ ९२॥ तिराकडयकसायअंबिलमहराई फासतो कवडम उयगरुयलासीत उसिणणिदलक्खाई संठाणतो परिमंडलबदृतसचउरंसआययसंठाणपरिणयाई अन्नमन्नबद्धाई । अण्णमपणपुट्ठाई अण्णमपणओगाढाई अण्णमण्णसिणे हपडिबद्धाइं अण्णमण्णघडताए चिट्ठति ?, हंता अस्थि । इमीसेणं भंते ! रयणप्प भाए पु० खरकंडस्स सोलसजोयणसहस्सवाहल्लस्स खेत्तच्छेएणं छिज्जमाणस्स अस्थि दव्याई वण्णओ काल जाव परिणयाई, हंता अस्थि । इमीसे णं रयणप्प० पु० रयणनामगरस कंडस्स जोयणसहस्सवाहल्लस्स खेत्तच्छेएणं छिजातं चेव जाच हंता अस्थि, एवं जाब रिहस्स, इमीसे णं भंते ! रयणप्प.पु. पंकबहुलस्स कंडस्स चउरासीतिजोयणसहस्सबाहल्लस्स वेसे तं चेव, एवं आवबहुलस्सवि असीतिजोयणसहस्सवाहल्लस्स । इमीसे णं भंते ! रयणप्प० पु० घणोदधिस्स बीसं जोयणसहस्सबाहल्लस्स खेत्तच्छेदेण तहेव । एवं घणवातस्स अंसखेजजोयणसहस्सबाहल्लस्स तहेव, ओवासंतरस्सवि तं चेव ॥ सक्करप्पभाए णं भंते! पु० यत्तीसुत्सरजोयणसतस [८६] ॥९२॥ ~ 187~
SR No.004114
Book TitleAagam 14 JIVAJIVABHIGAM Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size230 MB
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