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आगम
(१४)
“जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [२], ------------------------- उद्देशक: -1, ---------------------- मूलं [४४-४५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१४], उपांग सूत्र - [३] जीवाजीवाभिगममूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
श्रीजीवाजीवाभि
र प्रतिपत्ती जीवास्त्रि
मलयगि
भेदाः
प्रत सूत्रांक [४४-४५]
रीयावृत्तिः ।। ५२॥
सू०४४ खीभेदाः सू०४५
दीप अनुक्रम
सण्णाओ सरडीओ सेरंधीओ भावाओ खाराओ पवण्णाइयाओ चउप्पइयाओ मूसियाओ मुगुसिओ घरोलियाओ गोव्हियाओ, जोव्हियाओ विरचिरालियाओ, सेत्तं भुयगपरिसप्पीओ। से किं तं खहयरीओ?, २ चउविधाओ पण्णत्ता, तंजहा-चम्मपक्खीओ, जाव सेत्तं खहयरीओ, सेसं तिरिक्खजोणिओ ॥ से किं तं मणुस्सिओ?, २ तिविधाओ पण्णत्ता, तंजहा-कम्मभूमियाओ अकम्मभूमियाओ अंतरदीवियाओ । से किं तं अंतरदीविषाओ?, २ अट्ठावीसतिविधाओ षण्णत्ता, तंजहा-एगूरूइयाओ आभासियाओ जाव सुद्धदंतीओ, सेसं अंतरदी० ॥ से किं तं अकम्मभूमियाओ?,२ तीसविधाओ पषणता, तंजहा-पंचसु हेमवएसु पंचसु एरण्णवएम पंचसु हरिवंसेसु पंचसु रम्नगवासेसु पंचसु देवकुरासु पंचसु उत्तरकुरासु, सेत्तं अकम्मा। से किं तं कम्मभूमिया ?, २ पपणरसविधाओ पण्णत्ताओ, तंजहा-पंचसु भरहेसु पंचमु एरवएम पंचसु महाविदेहेसु, सेतं कम्मभूमगमणुस्सीओ, सेत्तं मणुस्सित्थीओ ॥ से किं तं देवित्थियाओ?, २ चउब्विधा पपणत्ता, तंजहा-भवणवासिदेवित्थियाओ वाणमंतरदेवित्थियाओ जोतिसियदेवित्थियाओ वेमाणियदेवित्थियाओ । से किं तं भवणवासिदेवित्थियाओ?, २ दसविहा पण्णता, तंजहा-असुरकुमारभवणवासिदेवित्थियाओ जाव थणितकुमारभवणवासिदेवित्थियाओ, से तं भवणवासिदेवित्थियाओ। से किं तं वाणमंतरदेवित्थियाओ?, २ अट्ट
[५२-५३]
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॥५२॥
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