SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (१३) “राजप्रश्निय"- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:) --------- मूलं [८३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्तिः भीराजनी कलाशिक्ष मलयगिरीया वृत्तिः णादि मू०८३ प्रत सूत्रांक ॥१४७ [८३] परिमंडियाहिं सदेसणेवत्थगहियबेसाहिं इंगियाचतिगपत्थियचियाणाहिं निउणकुसलाहिं विगीयाहि चेदिवाचावालतरुणिवंदपरिवाल परिखुढे वरिसघरकंचुइमहयरवंदपरिकिबले ह. स्थाओ हत्यं साहरिज्जमाणे उखन चिजमाणे २ अंगणं अंग परिभुजमाणे उगि जेमामे२ उकलालिज्जमाणे २ अवतासि.२ परिचुबिजमागे २ रम्मेसु मणिकोहिमतलेस परंगमाणे२ गिरिकदरमहोणे विव चंपगबरपायवे णि डाघायंसि सुहंसुहेणं परिवहिस्सइ । ताणं तं दृढपतियण दारगं अम्मापियरी सातिरेगअवासजायगं जाणित्ता सोभणसि तिहिकरणणक्खत्तम सि पहायं फयवलिकम्मं कयकोउअमंगलपायच्छित्तं सदालंकारविभूसिय करेता महया होसकार समुदएणं कलायरियस्ल उवणेहिति । तए णं से कलायरिए तं दढपतिण्णं दार लेहाइयाओ गणि यप्पहाणाओ सउणरुयपजवसाणाओ यावत्तरि कलाओ सुनओ अत्यओ पसिक्खावेहि य सेहावेहि य, तं-लेहं गणिपं रूपं नई गोयं वाइयं सरगयं पुक्खरगयं समतालं जूर्य जणवयं पासर्ग अहावयं पारेका दगमहियं अन्नविहि पाणविहिं वत्थविहिं विलेवणविहिं सयणविहिं अज पहेलियं मागहिय णिहाइयं गाहं गीइयं सिलोगं हिरण्णजुति सुवपणजुन्ति आभरणविहिं तरणीपडिकम्म इस्थिलक्खणं पुरिसलक्खणं हयलक्खणं गयलक्खणं कुक्कुडलक्षणं छत्तलक्षणं चकटकवणं देखलक्षणं असिलक्षणं मणिलक्षणं कागणिलक्षणं वत्थुविज पागरमाणं खंधवार माणवारं दीप अनुक्रम [८३] स॥१४७॥ REaratunmol प्रदेशी राज्ञस्य आगामि भवा: एवं मोक्ष-प्राप्ति: ~297~
SR No.004113
Book TitleAagam 13 RAJPRASHNIYA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages304
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size66 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy