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आगम
(१३)
"राजप्रश्निय"- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:)
---------- मूलं [७५-८०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
क्षामणा
श्रीराजमश्नी मलयगिरीया वृत्तिः
दानोपदेशः सू.७७-७८
॥१४३॥
प्रत सूत्रांक [७५-८०]
दीप अनुक्रम [७५-८०]
तया णं णसाला अरमाणिजा भवति, जया णं इवखुवा हे शिकाइ भिइ सिज्जइ पिजइ दिज्जइ तयाणं इपरु कामे रमणिजे भवइ, जया णं इवखुवाहे को छिपजइ जाव तया इकखुवाओ अरमणिजे भवाह, जया णं खलवाने उपभइ उड्डुइज्जइ मल इज इ मुणिज्जइ खज्जइ पिज्जा दिज्जइ तयाण सलवार रमणिजे भवति, जया गंदल वाडेमो उच्छुउभइ जाच अरमणिण्जे भवति, से सेणढण परसीएच बुइमाण तुमं पएसी! पुद्धिरमणिराजे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भविज्जासि जहा रणसंचा , तए णं पएसी केसि कुमारसमणं एवं वयासी-जो स्वस्तु भंते ! अहं पुचि रमगिरजे मदिरापरछा अरमणिजे भविरसामि, जहावरुनेइ वाजाय हलवाइवा, अहंण सेय. वियान गरीपमुव बाई सत्त गामसहस्साई चत्तारि भागे करिस्सामि, एग भाग बलवाहणस्स दलइस्सामि, एग भागं कुट्ठागारे हुभिरसामि, एग भाग अंतेउररस दलाइरसामि, एगेण भागेण महतिमा हलयं हागारसालं करिरसामि, तथणं यहहि परिसेहिं दिसभइमतवेयजेहिं विलं असणः उयकरूहाताबरण समयमाहणभिवरुयाण पंथियपहियाणं परिभाएमाणे २ यहूहि सीलच्यगुणवयबेरमणपाल पाणपोसहोववासरस जाव बिहरिरसामिारिक जामेव दिसि पाउम्भूए तामेव दिसि पहिगए ।। (स०७८)॥ तए णं से पएसी राया कल्लं जाव तेयसा जलते सेयवियापामोक्खाई सत्त गामसहरसाई पारिभाए कीरइ, एगं भागं बलवाहणरस दलाइ जाव कूडागारसाल करेइ,
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