________________
आगम
(१३)
"राजप्रश्निय”- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:)
---------- मूलं [६७-७४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
श्रीराजमश्नो मलयगिरीया वृत्तिः
जीवन्मृतयो स्तुलावा व स्ति: छेदे
प्रत सूत्रांक [६७-७४]
निदर्शने च *ज्योतिः
॥१३७॥
म.७०-१
प्पिया! कहाणं अडविं पविसामो, एत्तो णं तुम जोइभायणाओ जोई गहाय अम्हं असणं साहेजासि, अह तं जोइभायणे जोई विज्झवेजा एतो गं तुम कट्ठाओ जोइं गहाय अम्हं असणं साहेज्जासित्तिकट कट्ठाणं अडवि अणुपविहा, तए णं से पुरिसे तओ मुहत्तन्तरस्स तेसि पुरिसाणं असणं साहेमित्तिक जेणेव जोतिभायणे तेणेव उवागच्छा जोइभायणे जोई विज्झायमेव पासति, तए णं से पुरिसे जेणेव से कडे तेणेव उवागच्छद उवागच्छित्ता तं कट्टै सवओ समंता समभिलोएति नो चेवणं तस्य जोई पासति, तए णं से पुरिसे परियरं बंधइ फरमुं गिण्हा तं क दहा फालियं करेइ सब्यतो समंता समभिलोएइ णो चेव णं तस्य जोई पासइ, एवं जाव संखेजफालियं करेइ सवतो समंता समभिलोएइ नो चेव णं तस्य जोई पासह, तए णं से पुरिसे तैसि कहंसि दुहाफालिए वा जाव संखेजफालिए वा जोई अपासमाणे संते तंते परिसंते निश्विपणे समाणे परसुं पगते एबेइ २ परियरं मुयइ २ एवं वयासी-अहो! मए तेसिं पुरिसाणं असणे नो साहिएत्तिक ओहयमणसंकप्पे चितासोगसागरसंपबिट्ढे करयलपालस्थमुहे अज्माणोवगए मूमिगयदिहिए झियाइ, तए ण ते पुरिसा कट्ठाई छिदेति २त्तो जेणेव से पुरिसे तेणेव उषागईतिश्ती से पेरिस ओहयमणसंकप्प जाव झियायमाणं पासति २त्ता एवं बयासी-किम्मै तुम देवाणुपिया! ओहयमणसंकप्पे जाव सिधायसि,प्तए णं से पुरिसे एवं पयासी-तुस्से में
दीप अनुक्रम [६७-७४]
॥१३७॥
REBiratinida
केसिकुमार श्रमणं साधं प्रदेशी राजस्य धर्म-चर्चा
~ 277~