________________
आगम
(१३)
"राजप्रश्निय”- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:)
---------- मूलं [५६-६१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [५६-६१]
दीप अनुक्रम [५६-६१]
उवागच्छद २त्ता अहापडिरूवं उन्गहं उन्निहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरति । तए णं सेयवियाए नगरीए सघाढग महया जणसद्देइ वा० परिसा णिग्गछह, तए णं ते उज्जाणपालगा इमीसे कहाप लहा समाणा हतुह जावहिपया जेणेव केसीकुमारसमणे तेणेव उवागच्छन्ति २त्ता केसि कुमारसमणं वंदति नमसंति २त्ता अहापडिरूवं उग्गहं अणुजार्णति पाडिहारिएणं जाव संथारएणं उवनिमंतंति णाम गोयं पुच्छति २त्ता ओधारति २त्ता एगतं अवशमति अन्नमन्न एवं वयासी-जस्स णं देवाणुप्पिता! चित्ते सारही दसणं कंखइ देसणं पत्थे। दसणं पीहेड दसणं अभिलसह जस्स णं णामगोयस्सवि सवणयाए हतुह जाव हियए भवति से णं एस केसीकुमारसमणे पुवाणुपुदि चरमाणे गामाणुगाम दूइज्जमाणे इहमागए इह संपने इह समोसढे इहेव सेयचियाए णगरीए बहिया मियवणे उज्जाणे अहापडिरूवं जाव विहरह, तं गच्छामी
देवाणप्पिया! चित्तस्स सारहिस्स एयम8 पियं निवेएमा पियं से भवउ, अण्णमण्णस्स अंतिए एयम ठं पडिमुणेति २ जेणेव सेयविया णगरी जे मेव चित्तस्स सारहिस्स गिहे जेणेव चित्तसारही तेणेय उवागमति २त्ता चि सारहि करयल जाव वडाति २ ता एवं वयासी-जस्स णं देवाणुप्पिया! दसणं कखंति जाव अभिलसंति जस्स णं णामगोयस्सवि सवणयाए हहजाच भवह सेणं अयं केसी कुमारसमणे पुवाणुपुर्वि चरमाणे समोसढे जाव विहरइ । तए णं से चिचे सारही तेसि
~254~