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आगम
(१३)
“राजप्रश्निय”- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:)
---------- मूलं [५६-६१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति
श्रीराजपनी मळयगिरी
या वृत्तिः
प्रत सूत्रांक [५६-६१]
॥ १२५॥
उद्यानपा
केभ्यः समूचना के चिकुमारागमन सू०५७ ५८
दीप अनुक्रम [५६-६१]
वयणं पडिसुणति ॥ (सू०५७) ॥ तए णं चित्ते सारही जेणेव सेयविया णगरी तेणेव उवागच्छह २त्ता सेयविर्य नगरि मझमझेणं अणुपविसह २त्ता जेणेष पपसिस्स रपणो मिहे जेणेव पाहिरिया उवद्वाणसाला तेणेव उवागच्छइ २ चा तुरए णिगिण्हइ २ रह ठवेइ २ ता रहाओपञ्चोरूहह २ 'त्ता तं महत्थं जाव गेहद २ जेणेव परसी राया तेणेव उवागच्छह २ चा परसिं राय करयल जाव वडावेत्ता तं महत्थं जाव उचणेहतर णं से पएसी राया चित्तस्स सारहिस्सतं महत्व जाच पद्धिच्छह रत्ता चिसं मारहिं सकारह रत्ता सम्माणेइ २ पडिविसज्जेह । तर णं से चित्ते सारही परसिणा रण्णा विसज्जिए समाणे हट्ट जाव हियए पपसिस्स रनो अंतिमाओ पडिनिक्खमइयत्ता जेणेव चाउघंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ२ चाउग्घंटं आसरहं दुरूहात्तिासेयविप नगरि मनमज्झेणं जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छह २त्ता तुरए णिगिण्हह २ रहं ठमेह २ रहामो पचोरुहहर पहाए जाच उप्पि पासावरगए फुहमाणेहिं मुइंगमत्थरहि यत्तीसहयरएहिमाडएहि वरतरुणीसंपउत्तेहि उवणचिजमाणे २ उवगाइज्जमाणे २ उवलालिज्जमाणे २ इंटूठे सहफारिस जाव विहर ॥ (सू०५८)॥ तए ण केसीकुमारसमणे अण्णया कयाइ पाडिहारियं पीढफलगसेज्जासंथारगं पच्चप्पिणइ २ सावत्थीओ मगरीओ कोटगाओ चेइयाओ पडिमिक्लमंद पंचहि भणमारसरहिं जाब बिहरमाणे जेणेव केयाअडे जणवर जेणेव सेयबिया नगरी जेषीय भियवणे उज्जाणे होणेय
.॥१२॥
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