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आगम
(१३)
“राजप्रश्निय”- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:)
---------- मूलं [४१-४२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
मूर्याभस्या
श्रीराजपनी
मलयगिरीया वृत्तिः
भिषेका सू०४२
प्रत सूत्रांक [४१-४२
१०१ ॥
अप्पेगतिया पतति अप्पेगतिया तिन्निवि, अप्पेगतिया हफारेंति अप्पेगतिया धुकारेंति अप्पेगतिया धकारेंति, अप्पेगतिया साई २ नामाई साहति अपेगतिया चत्तारिवि, अप्पेगइया देवा देवससिवायं करेंति, अपेगतिया देवुज्जोयं करेंति, अप्पेगइया देवुकलियं करेंति, अप्पेगड्या देवा कहकहगं करेंति, अप्पेगतिया देवा दुहहगं करति, अप्पेगतिया चेलुकखेवं करेंति, अप्पेगइया देवसन्निवायं देषु जोय देवुकलियं देवकहकहग देवदुहदुहर्ग चेल्लुक्खेवं करेंति, अपेगतिया उष्पलहत्यगया जाव सयसहस्सपत्तहत्वगया अप्पेगतिया कलसहत्धगया जाव धूवकडुच्छयहत्वगया हट्ट तुट्ठ जाव हियया सातो समंता आहावंति परिधावति । तए णतं सूरियाभ देवं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ जाव सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अण्णे य बहवे सरियाभरायहाणिवस्थवा देवा य देवीओ य महया महया इंदाभिसेगेणं अभिसिंचति अभिसिचित्ता पत्तेयं २ करयलपरिग्गहियं सिरसावतं मत्थए अंजलिं कह एवं वयासी-जय २ नंदा जय २ भदा जय जय नंदा भई ते अजिय जिणाहि जियं च पालेहि जियमज्झे चसाहि इंदो इव देवाणं चंदी इव ताराणं चमरो इव असुराणं धरणो इव नागाणं भरहो इव मणुयाणं बहई पलिओवमाई बहई सागरोवमाई पदई पविओवमसागरोवमाई चउपहं सामाणियसाहस्सीणं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीर्ण सूरियाभस्स बिमाणस्स अन्नेसिं च बहूर्ण सूरियाभविमाणवासीणं देवाण य देवीण य आहेब जाव महया २ कारे
दीप अनुक्रम [४१-४२]]
Santantina
सूर्याभदेवस्य अभिषेकस्य वर्णनं
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