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आगम
(१२)
“औपपातिक” - उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:)
----------- मूलं [४०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१२], उपांग सूत्र - [१] "औपपातिक" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [४०]
सुभगे इ वा सुगंधे इ वा पोंडरीए इ वा महापोंडरीए इ वा सतपत्ते इ वा सहस्सपत्ते इ वा सतसहस्सपत्ते इ वा पंके जाए जले संवुहे णोवलिप्पद पंकरएणं णोवलिब्पह जलरएणं, एवमेव दढपइण्णेवि दारए कामेहिं जाए भोगेहिं संवुढे णोवलिप्पिहिति कामरएणं णोवलिप्पिहिति भोगरएणं णोवलिप्पिहिति मित्तणाइणियगसयणसंबंधिपरिजणेणं, से गं तहारूवाणं घेराणं अंतिए केवलं बोहिं बुझिहिति केवलबोहिं बुज्झित्ता
अगाराओ अणगारियं पञ्चदहिति । से णं भविस्सइ अणगारे भगवंते ईरियासमिए जाव गुत्तभयारी। है तस्स थे भगवंतस्स एतेणं विहारेणं विहरमाणस्स अणंते अणुत्तरे णिवाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुषणे
केवलवरणाणदंसणे समुप्पजिहिति । तए णं से दृढपइण्णे केवली बहुई वासाई केवलिपरियागं पाउणिहिति, केवलिपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सहि भत्ताई अणसणाए छेएत्ता जस्स-8 हाए कीरह णग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए केसलोए बंभचेरवासे अच्छत्तकं अणोवाहणकंद भूमिसेज्जा फलहसेज्जा कट्ठसेजा परघरपवेसो लद्वावलद्धं परेहिं हीलणाओ खिंसणाओ जिंदणाओ गरहणाओ तालणाओ तज्जणाओ परिभवणाओ पव्वहणाओ उच्चावया गामकंटका बावीसं परीसहोवसग्गा
अहियासिज्जति तमट्ठमाराहित्ता चरिमेहिं उस्सासणिस्सासेहिं सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुचिहिति परिणिPlव्वाहिति सव्वदुक्खाणमंतं करेहित्ति ॥ १४ ॥ (सू०४०)॥
इहैव ज्ञातान्तरमाह-'बहुजणेण'मित्यादि व्यक्त, नवरं 'पगइभद्दयाए इत्यत्र यावत्करणादिदं दृश्यं-'पगइउवसंतयाए ।
SARALALASS
दीप अनुक्रम
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अंबड-परिव्राजकस्य कथा
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