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________________ आगम (११) “विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) श्रुतस्कंध: [१], ----------------------- अध्ययनं [८] ----------------- मूलं [२९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक विपाके विसराई कुवेमाणं अभिक्खणं अभिक्खणं पूयकवले य रुहिरकवले य किमिकवले य चम्ममाणं पासति, श्रुत०१/इमे अज्झथिए ५ पुरा पोराणाणं जाव विहरति, एवं संपेहेति जेणेव समणे भगवं जाव पुब्वभवपुच्छा जाव वागरणं, एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेब जंबुद्दीचे दीवे भारहे वासे नंदिपुरे नाम णगरे ॥७९॥ होत्था मित्ते राया, तस्स णं मित्तस्स रन्नो सिरीए नाम महाणसिए होत्था अहम्मिए जाब दुष्पडियाणंदे, तस्स णं सिरीयस्स महाणसियस्स बहवे मच्छिया य वागुरिया य साउणिया य दिनभति कल्लाकल्लं बहवे दिसण्हमच्छा य जाव पडागातिपडागे य अए य जाव महिसे य तित्तिरे य जाव मयूरे य जीवियाओ ववदरोति सिरीयस्स महाणसियस्स उवणेति, अन्ने य से वहवे तित्तिरा य जाव मयूरा य पंजरंसि संनिरुद्धा चिट्ठति, अन्ने य बहवे पुरिसे दिनभति० ते बहवे तित्तिरे य जाव मयूरे य जीवियाओ चेव निप्पक्छेति |सिरीयस्स महाणसियस्स उवणेति, तते णं से सिरीए महाणसिए बहूणं जलयरथलयरखहयराणं मंसाई| नन्दिवर्धनाध्य. नन्दिवध नप्रागुत्तरभवाः सू०२९ [२९] दीप अनुक्रम [३२] १ 'सोहमच्छा' इत्यत्र यावत्करणात् 'खवल्लमच्छा विझिडिमच्छा हलिमच्छा' इत्यादि संभणमाछा पडागा' इत्येतदन्तं दृश्य, मत्स्यभेदाश्चैते रूडिगम्याः । 'अए य अह' यावत्करणात् 'एलए य रोझे य सूयरे य मिगे य इति दृश्यम् । तित्तिरे य' इत्यत्र याव- करणात् 'बट्टए य लावए य कुकुडे य' इति दृश्यम् ।। . . ७९ ~97~
SR No.004111
Book TitleAagam 11 VIPAK SHRUT Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages132
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size28 MB
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