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आगम
“विपाकश्रुत” - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:)
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श्रुतस्कंध: [१], ....... ....---- अध्ययनं [१०] ... ..... ..- मूलं [३२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [११], अंग सूत्र - [११] "विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [३२]
ताहे संता तंता परितंता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया, तते णं सा अंजूदेवी ताए धेयणाए अभिभूता समाणा सुक्का भुक्खा निम्मंसा कट्ठाई कलुणाई विसराई विलवति, एवं खलु गोयमा!
अंजूदेवी पुरापोराणाणं जाब विहरति । अंजू णं भंते! देवी इओ कालमासे कालं किचा कहिं गच्छि. &ाहिति? कहिं उचवजिहिति?, गोयमा। अंजू णं देवी नउई वासाई परमाउयं पालिसा कालमासे कालं किचा कादमीसे रयणप्पभाए पुढबीए नेरइयत्ताए उववजिहिद, एवं संसारो जहा पढमे तहा नेयब्वं जाव वणस्सति० साणं ततो अणंतरं उच्चहिता सव्वतोभद्दे नगरे मयूरत्ताए पचायाहिति, से णं तत्थ साउणिएहिं वधिए समाणे तत्थेव सव्वतोभहे नगरे सेहिकुलंसि पुत्तत्ताए पचायाहिति, से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तहारूवाणं
राणं केवलं बोहिं बुझिहिति पव्वजा सोहम्मे, से णं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं कहिं गच्छिहिति? कहिं उवजिहिति?, गोयमा महाविदेहे जहा पढमे जाव सिज्झिहिइ जाव अंतं काहिति । एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं दसमस्स अज्झयणस्स अयमढे पन्नत्ते, सेवं भंते २। (सू०३२) दुहविवागो दससु अज्झयणेसु ॥ पदमो सुयक्खंधो सम्मत्तो ॥१॥
॥ अजूसार्थवाहसुतायाः यशमाध्ययनस विवरणम् ॥ १० ॥ तत्समाप्तौ च समाप्त प्रथमचतस्कन्धविवरण मिति ॥ १॥
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दीप अनुक्रम [३४]
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अनु.१७
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अत्र दशमं अध्ययनं परिसमाप्तं
तत् परिसमाप्ते प्रथम-श्रुतस्कन्ध: अपि परिसमाप्त:
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