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आगम
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“ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:)
श्रुतस्कन्ध: [१] ----------------- अध्ययनं [१], ----------------- मूलं [१३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
ज्ञाताधर्म- कथाङ्गम्.
प्रत
१उत्क्षिप्तज्ञाताध्य. श्रेणिकागमः
सूत्रांक
॥२८॥
[१३]
दीप अनुक्रम
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विनयेयमित्यर्थः, संगतश्चार्य पाठ इति । उक्तदोहदाप्राप्तौ यत्तस्याः संपन्नं तदाह
तए णं सा धारिणी देवी तंसि दोहलंसि अविणिजमाणंसि असंपन्नदोहला असंपुन्नदोहला असंमाणियदोहला सुक्का भुक्खा णिम्मंसा ओलग्गा ओलुग्गसरीरा पमइलदुबला किलंता ओमंथियवयणनयणकमला पंडुइयमुही करयलमलियब चंपगमाला णित्तेया दीणविवण्णवयणा जहोचियपुष्पगंधमल्लालंकारहारं अणभिलसमाणी कीडारमणकिरियं च परिहावेमाणी दीणा दुम्मणा निराणंदा भूमिगयदिट्ठीया ओहयमणसंकप्पा जाव झियायह, तते णं तीसे धारिणीए देवीए अंगपडियारियाओ अभितरियाओ दासचेडीयाओ धारिणीं देवीं ओलुग्गं जाव झियायमाणि पासंति पासित्ता एवं वदासी-किण्णं तुमे देवाणुप्पिए ! ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा जाव झियायसि, तते णं सा धारणी देवी ताहिं अंगपडियारियाहि अभितरियाहिं दासचेडियाहिं एवं बुत्ता समाणी नो आदाति णो य परियाणाति अणाढायमाणी अपरियाणमाणी तुसिणिया संचिकृति, तते णं ताओ अंगपडियारियाओ अभितरियाओ दासचेडियाओ धारिणी देवीं दोचपि तचंपि एवं बयासी-किन्नं तुमे देवाणुप्पिए! ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा जाव झियायसि ?, तते णं सा धारिणीदेवी ताहि अंगपडियारियाहिं अभितरियाहिं दासचेडियाहिं दोचंपि तचंपि एवं वुत्ता समाणी णो आदाति णो परियाणति अणाढायमाणा अपरियायमाणा तुसिणिया संचिट्ठति, तते णं ताओ अंगपडियारियाओ दासचेडियाओ धारिणीए देवीए अणादातिजमाणीओ
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॥२८॥
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