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________________ आगम (०६) “ज्ञाताधर्मकथा” - अंगसूत्र-६ (मूलं+वृत्तिः ) श्रुतस्कन्ध: [१] ------------------ अध्ययनं [५], ----------------- मूलं [१७-६१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [०६], अंग सूत्र - [०६] "ज्ञाताधर्मकथा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: ज्ञाताधर्मकथाङ्गम्. प्रत सूत्रांक [५७-६१] ॥११२॥ ज्ञाते पन्ध| कवर्जानां विहारःस. ५८ शैलकबोधःसू. ५९ शेष दीप अनुक्रम [६९-७३] SoSaee प्पियं बंदमाणे सीसेणं पाएमु संघमि, तं खमंतु ण देवाणुप्पिया! खमन्तु मेऽवराहं तुमण्णं देवाणुप्पिया! णाइभुजो एवं करणयाएत्तिकटु सेलयं अणगारं एतमटुं सम्मं विणएणं भुज्जो २ खामेति, तते णं तस्स सेलयस्स रायरिसिस्स पंथएणं एवं वुत्तस्स अयमेयारूवे जाव समुपज्जित्था-एवं खलु अहं रजं च जाव ओसन्नो जाच उउवद्धपीढविहरामि, तं नो खलु कप्पति समणाणं णिग्गंधाणं अपसस्थाणं जाव विहरित्तए, तं सेयं खलु मे कल्लं मंडयं रायं आपुच्छित्ता पाडिहारियं पीढफलगसेज्जासंधारयं पञ्चप्पिणित्ता पंथएणं अणगारेणं सद्धिं पहिया अन्भुजएणं जाव जणवयविहारेणं विहरित्तए, एवं संपेहेति २ कल्लं जाव विहरति (सूत्र ५९) एवामेव समणाउसो ! जाव निग्गंथो बा २ ओसने जाव संधारए पमत्ते विहरति से णं इह लोए चेव बहणं समणाणं ४ हीलणिज्जे संसारो भाणियघो। तते णं ते पंथगवजा पंच अणगारसया इमीसे कहाए लदहा समाणा अन्नमन्नं सदाति २ एवं वयासी-सेलए रायरिसी पंधएणं बहिया जाव विहरति, सेयं खलु देवा! अम्हं सेलयं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए, एवं संपेहेंति २त्ता सेलयं रायं वसंपज्जित्ताणं विहरंति (सूत्र ६०)तते णं ते सेलयपामोक्खा पंच अणगारसया बहुणि वासाणि सामनपरियाग पाउणित्ता जेणेव पोंडरीये पवए तेणेव उवागच्छंति २ जहेव थावच्चापुत्ते तहेच सिद्धा । एवामेव समणाउसो! जो निग्गंधो वा २ जाव विहरिस्सति एवं साध्वाग मासू.६. निवाणं 10॥११॥ | शैलकराजर्षे: पार्श्वस्थता, सद्बोधप्राप्ति:, सिद्धिः ~ 227~
SR No.004106
Book TitleAagam 06 GYATA DHARM KATHA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages512
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size109 MB
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