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________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [३७१ -३७२] दीप अनुक्रम [४५१ ४५२] व्याख्याप्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः २ ॥४३९॥ “भगवती”- अंगसूत्र-५ ( मूलं + वृत्ति:) शतक [९], वर्ग [–], अंतर् शतक [-] उद्देशक [३२], मूलं [३७१-३७२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः संतरंपि बेइंदिया बहंति निरंतरंपि बेइंदिया उबर्हति, एवं जाव वाणमंतरा, संतरं भंते । जोइसिया पति पुच्छा, गंगेया। संतरंपि जोइसिया चयंति निरंतरंपि जोइसिया चयंति, एवं जाय बेमाणियावि (सूत्रं ३७२) । 'ते ण' मित्यादि, 'संतरं 'ति समयादिकालापेक्षया सविच्छेदं तत्र चैकेन्द्रियाणामनुसमयमुत्पादात् निरन्तरत्वमन्येषां तूत्पादे विरहस्यापि भावात् सान्तरत्वं निरन्तरत्वं च वाच्यमिति ॥ उत्पन्नानां च सतामुद्वर्त्तना भवतीत्यतस्तां निरूपयशाह- 'संतरं भंते! नेरइया उबवतीत्यादि ॥ उद्वृत्तानां च केषाश्चिद्गत्यन्तरे प्रवेशनं भवतीत्यतस्तनिरूपणायाहकवि णं भंते! पवेसणए पनन्ते १, गंगेया ! चउविहे पवेसणए पन्नत्ते तंजहा - नेरइयपवेसणए तिरियजोणियपवेसणए मणुस्सपवेसणए देवपवेसणए । नेरइयपवेसणए णं भंते ! कह विहे पनते १, गंगेया सत्तविहे पन्नत्ते, तंजहारयणप्पभापुढविनेर इयपवेसणए जाव अहेसत्तमापुढविने रइय पवेसणए ॥ एणे णं भंते! नेरइए नेरइयपवेसणएणं पविसणमाणे किं रयणप्पभाए होज्जा सक्षरप्पभाए होजा जाव अहेसत्तमाए होज्जा ?, गंगेया ! रथणप्पभाए वा होजा जाव आहेससमाए वा होला । दो भंते ! नेरइया नेरह| यपवेसणएणं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा. जाव आहेससमाए होजा ?, गंगेया ! रयणप्पभाए वा होळा जाव असत्समाए वा होजा, अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए होजा अहवा एगे रयणप्पभाए एगे बालुयप्पभाए होजा जाव एगे रयणप्पभाए एगे अहेसप्तमाए होजा, अहवा एंगे सकरप्पभाए एगे वालुयप्पभाए होजा जाव अहवा एगे संकरप्पभाए एगे अहेससमाए होला, अहवा एगे वालुयप्पभाए पार्श्वपत्य गांगेय अनगारस्य प्रश्नाः For Park Use Only ~883~ ९ शतके उद्देशः ३२ सान्तरायुत्पादोद्वर्त्तने सू ३७१ ३७२ ॥४३९॥ yor
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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