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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [१], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [२], मूलं [२१], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
[२१]
अत्धेगव्या विसमाउया विसमोववन्नगा ४ से सेणढणं गोयमा० ॥ असरकुमारा भंते ! सब्वे
समाहारा सब्वे समसरीरा, जहा नेरइया तहा भाणियब्वा, नवरं कम्मवन्नलेस्साओ परिवण्णेयदवाओ, पुब्बोववन्नगा महाकम्मतरागा अविसुद्धवन्नतरागा अविसुद्धलेसतरागा, पच्छोयवनगा पसत्था,
सेसं तहेच, एवं जाव धणियकुमाराणं । पुढविकाइयाणं आहारकम्मवनलेस्सा जहा नेरइयाणं ॥ पुढविकाइया ण भंते ! सव्वे समवेपणा ?, हंता समवेयणा, से केपट्टेणं भंते ! समवेयणा ?, गोयमा ! पुढविकाइया सब्वे असन्नी असन्निभूया अणिदाए वेयणं वेदेति से तेणद्वेणं ॥ पुढविकाइया गंभंते ! सब्वे समकिरिया १, हता समकिरिया, से केणटेणं, गोयमा ! पुढविकाइया सब्वे माई मिच्छादिट्टी ताणं णिययाओ पंच किरियाओ कजति, तंजहा-आरंभिया जाव मिच्छादसणवत्तिया, से तेणढणं समाउया समोवबन्नगा, ट्र|| जहा नेरइया तहा भाणियव्वा, जहा पुढविकाइया तहा जाव चरिंदिया। पंचिदियतिरिक्खजोणिया ||
जहा नेरहया नाणसं किरियासु, पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! सव्वे समकिरिया ?, गो०, णो तिok. सेकेणटेणे, गो. पंचिंदियतिरिक्खजोणिया तिविहा पन्नत्ता, तंजहा-सम्मदिही मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छा-12 दिट्टी, तत्थ णं जे ते सम्मदिडी ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-अस्संजया य संजयासंजया य, तत्व णं जे ते संजयासंजया तेसिणं तिन्नि किरियाओ कजंति, तंजहा-आरंभिया परिग्गहिया मापावत्तिया, असंजयाण चत्तारि, मिच्छादिट्ठीणं पंच, सम्मामिच्छादिट्ठीणं पंच, मणुस्सा जहा नेरइया नाणसं जे महासरीरा ते
दीप
अनुक्रम
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