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________________ आगम (०५) "भगवती"- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [८], वर्ग -1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१०], मूलं [३५९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३५९] 18णिज्जं जाच अंतराइयं, नेरइयाण भंते ! कइ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ?, गोयमा ! अह, एवं सघजीवाणं अह कम्मपगडीओ ठावेयचाओ जाव चेमाणियाणं । नाणावरणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स केवतिया अधिभागपलिच्छेदा पण्णत्ता, गोयमा ! अर्णता अविभागपलिकछेदा पण्णत्ता, नेरइयाणं भंते ! णाणावरणिजस्स कम्मस्स केवतिया अविभागपलिच्छेया पपणत्ता?, गोयमा ! अर्णता अविभागपलिच्छेदा पण्णत्ता, एवं सधजीवाणं जाव येमाणियाणं पुच्छा, गोयमा ! अणंता अविभागपलिच्छेदा पण्णत्ता, एवं जहा णाणावर#णिजस्स अविभागपलिच्छेदा भणिया तहा अट्टहवि कम्मपगडीणंभाणियषा जाव चेमाणियाणं । अंतराइमायस्स । एगमेगस्स भंते ! जीवस्स एगमेगे जीवपएसे णाणावरणिज्जस्स कम्मरस केवइएहिं अविभागपलिलिच्छदेहिं आवेढिए परिवेटिए सिया?, गोयमा ! सिय विढियपरिवेढिए सिय नो आवेढियपरिचेहिए. जह आवेढियपरिवेटिए नियमा अणंतेहिं, एगमेगस्स णं भंते ! नेरदयस्स एगमेगे जीवपएसे गाणावरणिजस्स कम्मरस केवइएहिं अविभागपलिच्छेदेहिं आवेढिए परिवेढिते !, गोयमा! नियमा अणंतेहिं, जहा नेरइय|स्स एवं जाच वेमाणियस्स, नवरं मणूसस्स जहा जीवस्स । एगमेगस्स णं भंते । जीवस्स एगमेगे जीवपएसे *दरिसणावरणिज्जस्स कम्मस्स केवतिएहिं एवं जहेव नाणावरणिजस्स तहेब दंडगो भाणियबो जाव वेमाणि यस्स, एवं जाव अंतराइयरस भाणियर्व, नवरं वेयणिजस्स आउयस्स णामस्स गोयस्स एएसिं चउण्हवि | | कम्माणं मणूसस्स जहा नेरइयरस तहा भाणियवं सेसं तं चेव ॥ (सूत्रं ३५९)। दीप ACCSECACISCESAR अनुक्रम [४३५] | कर्म-प्रकृते: अष्टविध-भेदा: ~848~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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