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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं वृत्ति:)
शतक [८], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [९], मूलं [३५३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
दशवक
उद्देश
प्रत सूत्रांक
बन्धपढ़िशिका
[३५३]
व्याख्याप्रज्ञप्तिः
॥ओराल०१॥ | ॥पषिय०२॥।॥आहारग०३॥ | ॥ तैजस०४॥ | ॥कामेण. ५॥ अभयदेवी
सबबंधा अर्णता ६ सषपंध. असं०३ सबबंध. थोवा १ देसबंध.विसेसाहिया ९ देसपंधा विसेसाया वृत्तिः
देसर्वधा असंखेज०८ | देसबंध असंखे०४ | देसबंध.संख्यातगुणा २ अबंधा अर्णता हिया ९ ॥४१॥ (विग्रहगति)अबंधा | अबंधा विसेसा- अबंधा विसेसा
भबंधा अर्णता विसेसाहिया ७ | हिया १० हिया ११
इहाल्पबहुवाधिकारे वृद्धा गाथा एवं प्रपश्चितवन्तःओरालसबबंधा थोवा अन्बंधया विसेसहिया । ततो य देसधा असंखगुणिया कह नेया ! ॥१॥ पढममि सचबंधो समए सेसेसु। है| देसबंधो उ । सिद्धाईण अबंधो विम्महगइयाण य जियाण ॥ २ ॥ इह पुण विग्गहिए चिय पहुंच भणिया अपंगा अहिया । सिद्धा ४ अर्णतभागंमि सबबन्धाणवि भवन्ति ॥३॥ उजुयाय एगर्वका दुइओवंका गई भवे तिविहा । पढमाइ सन्वधा सम्वे बीयाइ अद्धं तु॥१॥ दतइयाइ तइयभंगो लम्मा जीवाण सम्पबंधाण । इति तिनि सब्वबंधा रासी तिन्नेव व समंथा ॥ १५॥ रासिप्पमाणओ ते तुलाs-|
बंधा य सब्बबंधा य । संखापमाणओ पुष अबंधगा पुण जहन्भहिया ॥६॥जे एगसमइया से एगनिगोदंमि छदिसि एति । दुसमझ्या || तिपयरिया तिसमईया सेसलोगाओ ॥ ७॥ तिरियाययं चउदिसि पयरमसंखप्पएसबाहलं । उ पुव्यावरदाहिणुत्तरायया य दो पयरा ॥८॥
ने तिपयरिया ते छबिसिएदिती भवतऽसंखगुणा । सेसावि असंखगुणा खेत्तासंखेजगुणियचा ॥ ९॥ एवं पिसेसअहिया अवंधया सम्बधरदि
दीप
अनुक्रम [४२९]
॥४१
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