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आगम
(०५)
प्रत
सूत्रांक
[३३४]
दीप
अनुक्रम
[४०७]
“भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्तिः)
शतक [८], वर्ग [-], अंतर-शतक [-] उद्देशक [६], मूलं [ ३३४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
व्याख्यामज्ञठिः अभयदेषी - या वृतिः १
॥ ३७५॥
| विराहए ?, गोयमा ! आराहए नो विराहए, से य संपट्टिए संपते अप्पणा य, एवं संपत्तेणवि चत्तारि आलावगा भाणिया जहेब असंपत्तेणं । निग्गंथेण य वहिया विधारभूमिं विहारभूमिं वा निक्खतेणं अनपरे | अकिञ्चट्ठाणे पडिसेविए तस्स णं एवं भवति इहेव ताव अहं एवं एत्थवि एते चैव अट्ठ आलावगा भाणियद्दा | जाव नो विराहए। निग्गंथेण व गामाणुगामं दृइजमाणेणं अन्नपरे अकिचद्वाणे पडिसेविए तस्स णं एवं |भवति इहेव ताव अहं एत्थवि ते चेव अट्ट आलावगा भाणियवा जाव नो विराहए । निग्गंधीए य गाहावहकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविद्वाए अन्नयरे अकिञ्चद्वाणे पडिसेविए तीसे णं एवं भवइ इहेव ताव अहं एयरस ठाणस्स आलोएमि जाव तवोकम्मं परिवज्जामि तओ पच्छा पवत्तिणीए अंतियं आलोएस्सामि जान | पडिवज्जिस्सामि, सा य संपट्टिया असंपत्ता पवत्तिणी व अमुहा सिया सा णं भंते । किं आराहिया विराहिया ?, गोयमा ! आराहिया नो विराहिया, सा प संपट्टिया जहा निग्गंधस्स तिन्निगमा भणिया एवं निग्र्गश्रीएवि तिन्नि आलावगा भाणियवा जाव आराहिया नो विराहिया ॥ से केणट्टणं भंते ! एवं बुचइ-आराह ए नो विराहए ?, गोयमा ! से जहा नामए केइ पुरिसे एगं महं उन्नालोमं वा गयलोमं वा सणलोमं वा कप्पासलोमं वा तणसूपं वा दुहा वा तिहा वा संखेजहा वा छिंदिशा अगणिकार्यसि पक्खिवेज्जा से नूणं गोयमा १ | छिनमाणे छिन्ने पक्खिप्पमाणे पक्खित्ते दज्झमाणे दहेत्ति वत्तवं सिया ?, हंता भगवं ! छिनमाणे छिन्ने जाव दहेत्ति बत्तवं सिया, से जहा वा केइ पुरिसे वत्थं अहतं वा धोतं वा तंतुग्गयं वा मंजिद्वादोणीए पक्खिवेज्जा
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८ शतके उद्देशः ६ * अकृल्यसेवा यां तत्राभ्य+ श्रचप्रायश्चि ४ तं सू ३३४
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