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आगम
(०५)
प्रत
सूत्रांक
[३२२
३२३]
दीप
अनुक्रम
[३९५
-३९६]
“भगवती”- अंगसूत्र-५ ( मूलं + वृत्तिः )
शतक [८], वर्ग [-], अंतर् शतक [-] उद्देशक [२] मूलं [३२२-३२३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
सागरोवमाइं
सुयअन्नाणी सुप अन्नाणपरिगए भाचे आघवेति तं चैव । विभंगणाणस्स णं भंते ! के लिए विसर पण्णसे १, गोयमा ! से समासओ चडविहे पण्णसे, तंजहा- दवओ ४, दखओ णं विभंगनाणी विभंगमाणपरिंग याई दवाई | जाणइ पासह, एवं जाव भावओ गं विभंगनाणी विभंगनाणपरिगए भावे जाणह पासह ॥ ( सू ३२२) पाणी णं भंते ! णाणीति कालओ केवचिरं होइ ?, गोयमा ! नाणी दुविहे पनन्ते, तंजहा-साइए वा अपनवसिए साइए वा सपज्जवसिए, तत्थ णं जे से साइए सपज्जबसिए से जहनेणं अंतोमुत्तं उक्कोसेणं हा | सातिरेगाई । आभिणिवोहियणाणी णं भंते ! आभिणियोहिय० एवं नाणी आभिणियो हिघनाणी जाय केवल| नाणी । अन्नाणी महअन्नाणी सुयअन्नाणी विभंगनाणी, एएसिं दसहवि संचिणा जहा कायठिईए | अंतरं सर्व जहा जीवाभिगमे ॥ अप्पाबहुगाणि तिन्नि जहा बहुवत्तहयाए । केवतिया णं भंते ! | आभिणियोहियणाणपज्जवा पण्णत्ता ?, गोयमा ! अनंता आभिणिबोहियणाणपज्जवा पण्णत्ता । केवतिया णं भंते! सुथनाणपज्जवा पण्णत्ता ?, एवं चैव एवं जाय केवलनाणस्स । एवं मइअन्नाणस्स सुयअन्नाणस्स, केव| तिया णं भंते! विभंगनाणपञ्जवा पण्णत्ता ?, गोयमा ! अनंता विभंगनाणपल्लवा पण्णत्ता, एएसि णं भंते! | आभिणियोहियनाणपजवाणं सुयनाण० ओहिनाण० मणपज्जवनाण० केवलनाणपजवाण ६ कयरे २ जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सहत्थोवा मणपज्जवनाणपजवा ओहिनाणपञ्जवा अनंतगुणा सुयनाणपञ्जवा अनंतगुणा आभिणिचोहियनाणपञ्जवा अनंतगुणा केवलनाणपजवा अनंतगुणा ॥ एएसिणं भंते ! महअन्ना
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