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आगम
(०५)
"भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [८], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [३१३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [३१३]
३१२एकद
दीप अनुक्रम [३८६]
रापि, एवं जाव वणस्सइकाइयाणं चजकओ भेदो, बेइंदियतेइंदियचरिदियाणं दुयओ मेदो पळसगा || प्रज्ञप्तिः
* शतके अपज्जत्तगाय । जइपंचिंदियओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए किं तिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरी-18 अभयदेवीला
उद्देशः१ I रकायप्पओगपरिणए मणुस्सपंचिंदिय जाव परिणए , गोयमा ! तिरिक्खजोणिय जाव परिणए वा मणु-मिश्रविश्व
स्सपंचिंदिय जाव परिणए बा, जइ तिरिक्खजोणिय जाव परिणए किंजलचरतिरिक्खजोणिय जाच परि-15 सापरिणा॥३३॥ णए वा थलचरसहचर०, एवं चउक्कओ भेदो जाव खहचराणं । जइ मणुस्सपचिंदिय जाव परिणए कि संमु- मोसू३११
च्छिममणुस्सपंचिंदिय जाव परिणए गम्भवकंतियमणुस्स जाव परिणए ?, गोयमा ! दोसुवि, जइ गम्भवतियमणुस्स जाव परिणए किं पचत्तगब्भवतिय जाय परिणए अपनत्तगन्भवतियमणुस्सपंचिंदियओरा-1
व्यपरिणा
मासू३१३ लियसरीरकायप्पयोगपरिणए ?, गोयमा ! पजत्तगन्भवतिय जाव परिणए वा अपजसगन्भवतिय जाव परिणए १। जइ ओरालियमीसासरीरकायप्पओगपरिणए किं एगिदियओरालियमीसासरीरकायापओगपरिणए बेईदियजावपरिणए जाव पंचेंदियओरालिय जाव परिणए, गोयमा ! एंगिदियओरालिय एवं जहा ओरालियसरीरकायप्पयोगपरिणएणं आलावगो भणिो तहा ओरालियमीसा सरीरकायप्पओगपरिणएवि आलावगो भाणियबो, नवरं वायरवाउक्काइयगन्भवतियपंचिंदियतिरिक्खजोणियगन्भवतियमणुस्साणं, एएसि गं पज्जत्तापज्जत्तगाणं सेसाणं अपजत्तगाणं २। जई वेउवियसरीरकायप्पयोगपरिणए किं एगिदियवेउवियसरीरकायप्पओगपरिणए जाव पंचिंदियवेउवियसरीर जाव
॥३३॥
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