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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [७], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [९], मूलं [३०१-३०४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [09], अंग सूत्र - [५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [३०१-३०४]
दीप
व्याख्या- पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उबट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छड उवागच्छइत्ताह
शतके प्रज्ञप्तिःट चाउग्घंटं आसरहं दुरूहद २ हयगयरह जाव संपरिबुडे महया भडचडगर जाव परिक्खित्ते जेणेव रहमुअभयदेवी- सले संगामे तेणेव उवागच्छइरत्ता रहमुसलं संगाम ओयाओ, तए णं से वरुणे णागणतुए रहमुसलं संगाम ३०युद्धया वृत्तिःला | ओयाए समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-कप्पति मे रहमुसलं संगाम संगामेमाणस्स जे पुचि हतदेवत्व ॥२०॥ | पहणइ से पडिहणित्तए अवसेसे नो कप्पत्तीति, अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हह अभिगेण्हइत्ता रहमुसलं प्रघोषहेतु
संगाम संगामेति, तए णं तस्स वरुणस्स नागनत्तुयस्स रहमुसलं संगाम संगामेमाणस्स एगे पुरिसे सरिसए |सरिसत्तए सरिसपए सरिसभंडमत्तोवगरणे रहेणं पडिरह हदमागए, तए णं से पुरिसे वरुणं णागणत्तुर्य एवं वयासी-पहण भो वरुणा ! णागणतुया ! प०२, तए णं से वरुणे णागणतुए तं पुरिसं एवं बदासी
नो खलु मे कप्पइ देवाणुप्पिया ! पुषिं अहयस्स पणित्तए, तुम चेव णं पुवं पहणाहि, तए णं से पुरिसे वरुणे Mणागणचएणं एवं बुत्ते समाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे धणुं परामुसइ २ उK परामुसइ उK परामु
सित्ता ठाणं ठाति ठाणं ठिच्चा आययकन्नाययं उसुं करेइ आययकन्नाययं उसुकरेत्ता वरुणं णागणतुयं गाढप्पहारी करेइ, तए णं से वरुणे णागनत्तुए तेणं पुरिसेणं गाढप्पहारीकए समाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे
॥३२०॥ ४ घणु परामुसइ धणुं परामुसित्ता उK परामुसह उK परामुसित्ता आययकन्नाययं उसुं करेइ आययकन्नापयं०२
तं पुरिसं एगाहचं कूडाहचं जीवियाओ ववरोवह, तए णं से वरुणे णागणतुए तेणं पुरिसेणं गाढप्पहारी
अनुक्रम [३७३-३७६]
रथमुशलं संग्राम
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