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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [७], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [3], मूलं [२७५-२७७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [२७५, २७७]
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म्हासु वणस्सइकाइया सबप्पाहारगा भवंति, कम्हा णं भंते ! गिम्हासु बहवे वणस्सइकाइया पत्तिया पुफिया| फलिया हरियगरेरिजमाणा सिरीए अईव अईव उवसोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठति ?, गोयमा ! गिम्हामुणं यहचे उसिणजोणिया जीवा य पोग्गला य वणस्सइकाइयत्साए वक्कमति विउक्कमति चयंति उववचंति, एवं खलु गोयमा! गिम्हासु बहवे वणस्सइकाइया पत्तिया पुफिया जाव चिट्ठति। (सूत्र २७५) से नूर्ण भंते । मूला मूलजीवफुडा कंदा कंदजीवफुडा जाव बीया बीयजीव फुडा, हंता गोयमा ! मूला मूलजीवफुडा जाव बीया बीयजीवफुटा । जति णं भंते ! मूला मूलजीवफुडा जाव बीया वीयजीवफुडा कम्हा णं भंते || वणस्सइकाइया आहारेंति कम्हा परिणामेति ?, गोयमा! मूला मूलजीवफुडा पुढविजीवपडिबद्धा तम्हा || | आहारैति तम्हा परिणामेंति कंदा कंदजीवकुडा मूलजीवपडिबद्धा तम्हा आहारेइ तम्हा परिणामेह, एवं जाव बीया बीयजीवफुडा फलजीवपडिबद्धा तम्हा आहारेइ तम्हा परिणामेह॥(सूत्रं २७६) अह भंते ! आलुए मूलएर | सिंगवेरे हिरिली सिरिलि सिस्सिरिली किट्ठिया छिरिया छीरिविरालिया कण्हकंदे वजकंदे सूरणकंदे खेलूडे|
अद्दए भद्दमुत्था पिंडहलिहा लोहीणीह थीह थिरूगा मुग्गकन्नी अस्सकन्नी सीहंढी मुंमुंडी जे यावन्ने तहप्पगारा कसबे ते अणंतजीवा विविहसत्ता?,हंतागोयमा!आलुए मूलए जाव अणंतजीवा विविहसत्ता ॥ (सूत्रं २७७)||2
'वणस्सइकाइया णं भंते ! इत्यादि, 'किंकालं ति कस्मिन् काले 'पाउसे त्यादि प्रावृडादौ बहुत्वाजलस्नेहस्य महाहारतोका, प्रावृट् श्रावणादिवरात्रोऽश्वयुजादिः 'सरदेति शरत् मार्गशीर्षादिस्तत्र चाल्पाहारा भवन्तीति ज्ञेयं, |
दीप
अनुक्रम [३४५, ३४७]]
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