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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [६], वर्ग [-], अंतर्-शतक -], उद्देशक [५], मूलं [२४१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२४१] दीप अनुक्रम [२९१] अनन्तरोदेशके सप्रदेशा जीवा सक्ताः, अध सप्रदेशमेव तमस्कायादिकं प्रतिपादयितुं पश्चमोद्देशकमाह ६ शतके व्याख्याप्रज्ञप्तिः किमियं भंते ! तमुकाएत्ति पवुच्चइ किं पुढवी तमुक्काएत्ति पञ्चति आऊ तमुक्काएत्ति पवुच्चति ? गोयमा ! . उद्देशः५ अभयदेवी |४|नो पुढवी तमुकाएति पचति आऊ तमुक्काएत्ति पवुच्चति । से केणट्टेणं०१, गोयमा ! पढविकाए णं अत्थेया वृत्तिः स्व०सू२४१ गतिए सुभे देसं पकासेति अत्धेगइए देसं नो पकासेह; से तेणटेणं० । तमुक्काए णं भंते ! कहिं समुट्ठिए कहिं | संनिट्टिए ?, गोयमा ! जंबुशीवस्स २ वहिया तिरियमसंखेजे दीवसमुद्दे वीईवतित्ता अरुणवरस्स दीवस्स8 ॥२६७॥ बाहिरिल्लाओ वेतियन्ताओ अरुणोदयं समुएं पायालीसं जोयणसहस्साणि ओगाहित्ता उवरिल्लाओ जलताओ एकपदेसियाए सेढीए इत्थ णं तमुकाए समुहिए, सत्तरस एकवीसे जोयणसए उडे उप्पइत्ता तओ पच्छा तिरियं पवित्थरमाणे २ सोहम्मीसाणसणकुमारमाहिदे चत्तारिवि कप्पे आवरित्तार्ण उझुपि य णं जाव 8 भलोगे कप्पे रिहविमाणपत्थर्ड संपत्ते एस्थ गं तमुक्काए णं संनिहिए ॥ तमुकाएणं भंते ! किंसंठिए पन्नत्ते?, गोयमा ! अहे मल्लगमूलसंठिए उपि कुकडगपंजरगसंठिए पण्णत्ते ॥ तमुक्काए णं भंते ! केवतियं विक्वं भेणं केवतियं परिक्खेवेणं पण्णते?, गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-संखेजवित्थडे य असंखेजवित्थडे काय, तत्थ णं जे से संखेचवित्थडे से णं संखेजाई जोयणसहस्साई विक्खंभेणं असंखेजाई जोयणसहस्साईट ॥२६७॥ परिक्खेवेणं प०, तत्थ गंजे से असंखिज्जवित्थडे से णं असंखेज्जाई जोयणसहस्साई विक्खंभेणं असंखेजाई जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ताई। तमुक्काए णं भंते ! केमहालए प०१,गोषमा अयं णं जंबुद्दीवे २ सबदी-18 अथ षष्ठं-शतके पंचम-उद्देशक: आरम्भ: तमस्काय-स्वरूप ~539~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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