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आगम
(०५)
"भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति
शतक [५], वर्ग [-1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [२१५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती"मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक २१५]
दीप अनुक्रम
व्याख्या- तिपदेसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा, गोयमा ! अणद्धे समजले सपदेसे नो सअद्धे णो अमज्ञ णो अपदेसे, जहा हातके प्रज्ञप्तिः दुपदेसिओतहा जे समा ते भाणियबा, जे विसमा ते जहा तिपएसिओ तहा भाणियबा । संखेजपदेसिए उद्देशः७
हीण भंते ! बंधे किं सअढे ३? पुच्छा, गोयमा । सिय सअद्धे अमझे सपदेसे सिय अणहे समझे सपदेसे परमाण्वादेः या वृत्तिः१ जहा संखेजपदेसिओ तहा असंखेजपदेसिओऽवि अणंतपदेसिओऽवि ॥ (सत्र २१५)॥
सार्धादिता ॥२३॥
| 'दुपएसिए'इत्यादि, यस्य स्कन्धस्य समाः प्रदेशाः स साद्धों यस्य तु विषमाः स समध्यः, समवेयप्रदेशिकादिस्तुशादेशमशादि स्कन्धः समप्रदेशिकः इतरश्च, तब यः समप्रदेशिकः स साझेऽमध्या, इतरस्तु विपरीत इति ॥
चसू २१५
२१६ | परमाणुपोग्गले णं मंते ! परमाणुपोग्गलं फुसमाणे किं देसेणं देसं फुसह १ देसेणं देसे फुसहर
देसेणं सर्व फुसइ ३ देसेहिं देसं फुसति ४ देसेहिं देसे फुसइ ५ देसेहिं सव्वं फुसद६ सब्वेर्ण देसं फुस-12 &ाति ७ सम्वेणं देसे फुसति ८ सब्वेणं सव्वं फुसइ ९१, गोयमा! णो देसणं देसं फुसइ णो देसेणं देसे
फुसति णो देसेणं सव्वं फसइ णो देसेहिं देसं फुसति नो देसेहिं देसे फुसह नो देसेहिं सव्वं फुसति णो ४ सम्वेणं देसं फुसह णो सब्वेणं देसे फुसति सव्वेणं सव्वं फुसइ, एवं परमाणुपोग्गले दुपदेसियं फुसमाणे || | सत्तमणवमेहिं फुसति, परमाणुपोग्गले तिपएसियं फुसमाणे णिप्पच्छिमएहिं तिहिं फु०, जहा परमाणुपो-|| ग्गले तिपएसियं फसाविओ एवं फसावेयव्योजाव अणंतपएसिओ। दपएसिए णं भंते । खंधे परमाणुपोग्गलं ||| ॥२३३॥ फुसमाणे पुच्छा, ततियनवमेहिं फुसति, दुपदेसियं फुसमाणो पदमतइयसत्तमणवमेहिं फुसह, दुपदेसिओ
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