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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [३], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक २], मूलं [१४२-१४४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१४२-१४४] 5555754 गाथा: भीमागारं भासुरं भयाणीयं गंभीरं उत्तासणयं कालकुरत्तमासरासिसंकासं जोयणसयसाहस्सीय महाबोंदि का विउब्वइ २ अप्फोडेइ २ वग्गह २ गजइरहयहेसियं करेइ २ हत्विगुलगुलाइयं करेह २रहघणघणाइयं करेइ २|| पायदद्दरगं करेइ २ भूमिचवेडयं दलयइ २ सीहणादं नदइ २ उच्छोलेइ २ पच्छोलेइ २ तिपई छिदइ २ वामं 8 भुयं ऊसवेइ २ दाहिणहत्यपदेसिणीए य अंगुट्ठणहेण य वितिरिच्छमुहं विडंबेइ २ महया २ सद्देणं २ कलकलरवेणं करेइ, एगे अबीए फलिहरयणमायाए उर्दु वेहासं उप्पइए, खोभंते चेव अहेलोयं कंपेमाणे च मेयणितलं आकर्ट्स (साकहूं) तेव तिरियलोयं फोडेमाणेव अंबरतलं कत्थइ गजंतो कत्थइ विजुयायंते कत्थइ वासं वासमाणे कत्थई रउग्घायं पकरेमाणे कत्थइ तमुक्कायं पकरेमाणे, वाणमंतरदेवे वित्तासेमाणे, जोइसिए देवे दुहा विभयमाणे २ आयरक्खे देवे विपलायमाणे २ फलिहरयणं अंबरतलंसि वियट्टमाणे २ विउज्झाएमाणे २ ताए उकिटाए जाव तिरियमसंखजाणं दीवसमुदाणं मझं मझेणं वीयीवयमाणे २ जेणेव सोहम्मे 8 कप्पे जेणेव सोहम्मव.सए विमाणे जेणेव समा सुधम्मा तेणेव उवागच्छइ २ एगं पायं पउमवरवेइयाए करेइ है एगं पायं सभाए सुहम्माए करेइ फलिहरयणेणं महया २ सद्देणं तिक्खुत्तो इंदकीलं आउडेइ २ एवं वयासी कहिणं भो! सके देविंदे देवराया ? कहिणं ताओ चउरासीइ सामाणियसाहस्सीओ? जाव कहि णं ताओ *चत्तारि चउरासीइओ आयरक्खदेवसाहस्सीओ? कहि गं ताओ अणेगाओ अच्छराकोडीओ अजहणामि अज महेमिअन्न वहेमि अज ममं अवसाओ अच्छराओ वसमुवणमंतुत्तिकछु तं अणिटुं अकंतं अप्पियं असु० अमणु. दीप अनुक्रम [१७० -१७२] पूरण-गाथापति एवं चमरोत्पात कथा ~350~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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