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________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [१४२ -१४४] + गाथा: दीप अनुक्रम [१७० -१७२] “भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्ति:) शतक [३], वर्ग [-], अंतर् शतक [-], उद्देशक [२], मूलं [ १४२-१४४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः दबने पंचविहाए पत्तीए पत्रत्तिभावं गच्छा, तंजहा-आहारपजसीए जाव भासमणपज्जत्तीए, तए णं से चमरे असुरिंदे असुरराया पंचविहाए पत्तीए पत्तिभावं गए समाणे उद्धं बीससाए ओहिणा आभोएड जात्र सोहम्मों कप्पो, पासइ य तत्थ सकं देविंदं देवरायं मघवं पाकसासणं सकतुं सहस्सक्खं वज्रपाणि पुरंदरं जाब दस दिसाओ उज्जोवेमाणं पभासेमाणं सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसर विमाणे सर्कसि सीहासणंसि | जाव दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणं पासइ २ इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पजित्था केस णं एस अपत्थियपत्थर दुरंतपंतलक्खणे हिरिसिरिपरिवज्जिए हीणपुन्नचाउदसे जनं ममं | इमाए एयारूवाए दिव्वाए देविहीए जाव दिव्वे देवाणुभावे लदे पत्ते अभिसमन्नागए उपि अप्पुस्सुए दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरह, एवं संपेहेइ में सामाणियपरिसोववन्नए देवे सहावेह २ एवं वयासी-केस णं एस देवाशुपिया अपत्थियपत्थर जाव भुंजमाणे विहरइ ?, तए णं ते सामाणियपरिसोववन्नगा देवा चमरेणं असुरिंदेणं असुररन्ना एवं वृत्ता समाणा हट्टतुट्ठा जाव हयहियया करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जपणं विजपुणं वद्भावेति २ एवं बयासी-एस णं देवाणुपिया ! सके देविंदे देवराया जाव विहरह, तए णं से चमरे असुरिंदे असुरराया तेसिं सामाणियपरिसोववन्नगाणं देवाणं अंतिए एयमहं सोचा निसम्म आसुरुते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे ते सामाणियपरिसोववन्नए देवे एवं वयासी भन्ने खलु भो ! (से) सके देविंदे देवराया अन्ने खलु भो! से चमरे असुरिंदे असुरराया, महिहीए स्खलु पूरण-गाथापति एवं चमरोत्पात कथा For Parts Only ~348~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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