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आगम
(०५)
प्रत
सूत्रांक
[११८]
दीप
अनुक्रम [१४२]
““भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्तिः )
शतक [२], वर्ग [-], अंतर् शतक [-], उद्देशक [१०], मूलं [११८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित
आगमसूत्र - [ ०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
अथण्णे जाब अरूवी जीवे सासए अवट्टिए लोगध्वे, से समासओ पंचविहे पण्णसे, तंजा-दव्यओ जाव गुणओ, दव्वओ णं जीवत्थिकाए अनंताई जीवदव्वाई, खेसओ लोग पमाणमेत्ते कालओ न कयाइ न आसि जाव निचे, भावओ पुण अवण्णे अगंधे अरसे अफासे, गुणओ उवओगगुणे । पोग्गलत्थिकाए णं भंते! कतिवरण कतिगंधे० रसे० फासे?, गोयमा ! पंचवण्णे पंचरसे दुर्गंधे अट्ठफा से रूबी अजीवे सासए अवट्ठिए | लोगदब्बे, से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा-दब्बध खेराओ कालओ भावओ गुणओ, दव्वभ णं पोग्गलस्थिकाए अनंताई दव्वाई, खेत्तओ लोयप्पमाणमेसे, कालओ न कथाह न आसिजाव निचे, भावओ | वण्णमंते गंध० रस० फासमंते, गुणओ गहणगुणे । (सू०११८) एगे भंते ! धम्मस्थिकायपदेसे धम्मत्थिकाएत्ति वत्तव्यं | सिया ?, गोयमा ! णो इणट्टे समट्ठे, एवं दोनिवि तिन्निवि चत्तारि पंच छ सत्त अट्ठ नव दस संखेजा, असंखेजा भंते! धम्मत्थिकायप्पएसा धम्मत्थिकाएन्ति वक्तव्यं सिया ?, गोयमा ! णो इणडे समट्ठे, एगपदेसूणेविय णं भंते ! धम्मस्थिकाप २ ति वत्तव्यं सिया ? णो तिणट्टे समट्टे, से केणद्वेणं भंते । एवं बुचइ ? एगे धम्मत्थिकायप| देसे नो धम्मत्थिकापत्ति वत्तच्वं सिया जाव एमपदेसृणेवि य णं धम्मत्थिकाए नो धम्मत्थिकापत्ति वतव्वं सिया ?, से नूणं गोधमा ! खंडे चक्के सगले चक्के ?, भगवं ! नो खंडे चक्के सकले चके, एवं छत्ते चम्मे दंडे दूसे आज पहे मोयए, से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं बुधइ- एगे घम्मत्थिकायपदेसे नो धम्मत्थिकाएत्ति वत्तव्यं सिया जाव एगपदेसूणेविय णं धम्मत्थिकाए नो धम्मस्थिकापत्ति वक्तव्वं सिया ॥ से किंखातिए णं भंते! धम्म
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