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आगम
(०५)
"भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [१], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [९], मूलं [७२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
[७२]
नुपरिवर्त
॥१५॥
दीप अनुक्रम [९४]
व्याख्या
च्छन्ति, एवं संसारं आउलीकरेंति एवं परित्तीकरेंति दीहीकरति हस्सीकरेंति एवं अणुपरियति एवं बीइ- १ शतके प्रज्ञप्तिः ||४|| वयंति-पसत्था चत्तारि अप्पसत्था चत्तारि ॥ (सू०७२) ॥
5 उद्देश: अभयदेवी- गायत्तंति 'गुरुकत्वम्' अशुभकर्मोपचयरूपमधस्साद्गमनहेतुभूतं 'लघुकत्वं' गौरव विपरीतम् , एवम् 'आउलीकरिति
| जीवाना या वृत्तिः शाति , इहैवंशब्दः पूर्वोक्ताभिलापसंसूचनार्थः, स चैवम्-'कहन्नं भंते ! जीवा संसारं आउलीकरेंति ?, गोयमा पाणाइवा
गुर्वाकुला४ एण मित्यादि, एवमुत्तरत्रापि, तत्र 'आउलीकरेंति' प्रचुरीकुर्वन्ति कर्मभिरित्यर्थः, 'परित्तीकरैति'त्ति स्तोकं कुर्वन्ति
नव्यतित्रकर्मभिरेव, 'दीहीकरैति'त्ति दीर्घ प्रचुरकालमित्यर्थः, 'हस्सीकरेंति'त्ति अल्पकालमित्यर्थः 'अणुपरियदृति'त्ति पौनः- जनेतराणि | पुन्येन भ्रमन्तीत्यर्थः, 'वीइवयंति'त्ति व्यतिब्रजन्ति व्यतिक्रामन्तीत्यर्थः, 'पसत्था चत्तारित्ति लघुत्वपरीतत्वहस्वत्व- सू ७२
व्यतिव्रजनदण्डकाः प्रशस्ताः मोक्षाङ्गत्वात् , 'अप्पसत्था चत्तारित्ति गुरुत्वाकुलत्वदीर्घत्वानुपरिवर्त्तनदण्डका अप्र* शस्ताः अमोक्षात्वादिति ॥ गुरुत्वलघुत्वाधिकारादिदमाह॥ सत्तमे णं भंते ओवासंतरे किं गुरुए लहुए गुरुयलहुए अगुरुयलहए, गोयमा! नो गुरुए नो लहुए नो गुरुयलहुए अगुरुयलहुए। सत्तमे ण भंते ! तणुवाए किं गुरुए लहुए गुरुयलहुए अगुरुयलहुए , गोपमा ! नो || गुरुए नो लहुए गुरुयलहुए नो अगुरुयलहुए । एवं सत्तमे घणवाए सत्तमे घणोदही सत्तमा पुढवी, उवासंतराई ॥ १५ ॥ |सवाई जहा सत्तमे ओवासंतरे, (सेसा) जहा तणुवाए, एवं-ओवासवायघणउहि पुढवी दीवा य सागरावासा। नेरइयाण भंते ! किं गुरुया जाव अगुरुलहुया ?, गोयमा ! नो गुरुया नो लहुया गुरुयलहुयावि अगुरुलहुयावि,151
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